16 For God so loved the world that he gave his only Son, that everyone who believes in him should not perish but have everlasting life. 17 For God did not send his Son into the world to condemn the world but to save the world through him. 18 Whoever believes in him should not be condemned; but whoever does not believe in him is condemned already, because he has not believed in the name of God's only Son.oly words of lord jesus
Wednesday, December 4, 2024
बाइबल: प्रभु की वाणी है! Bible: God's voice!
बाइबल: प्रभु की वाणी है!
ईश्वर ने बाइबिल की पुस्तकों की रचना में किस प्रकार प्रेरणा प्रदान की थी, जिसके कारण यह पुस्तक ईश्वर की वाणी कही गई है, यह एक दिव्य रहस्य है. हमारा विश्वास है कि ईश्वर के पुत्र ने इस प्रकार के देहधारण की पूर्ण रूप से ईश्वर रहते हुए भी वह पूर्ण रूप से मनुष्य बन गए. ऐसे ही यह भी कहा जा सकता है कि बाइबल की रचनाएं पूर्ण रूप से मनुष्य कृत है, फिर भी इनमें ईश्वर के शब्द अवतरित हुए हैं. अंतिम विश्लेषण में यह एक दिव्य रहस्य है. बाइबल की पुस्तके मानव द्वारा रचित है और ईश्वर धारा भी. हम समझ सकते हैं कि मानवी साहित्य रचना क्या है. किंतु ईश्वरी प्रेरणा तो अदृश्य कृपा है और यह पूर्णत: है रहस्यमय है. उसकी सहायता से पवित्र लेखकों ने अपने स्वतंत्र प्रतिभा और अपने व्यक्तिगत शैली और अशुण रखते हुए, तथा देश काल की सीमाओं में आबद्ध रखकर वही लिखा, जो ईश्वर चाहता था.
इससे पाठक सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बाइबल मात्रा प्राचीन साहित्य के बहुमूल्य मंजूषा नहीं है, न ही इजरायली प्रजा के धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों का विचित्र संकलन है. बाइबल कोई ऐसा ग्रंथ नहीं है, जिसमें किसी लेखक ने ईश्वर के विषय में लिखा है.बाइबल प्रधानत: एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें ईश्वर मनुष्य को संबोधित करता है. पवित्र लेखक इस सच्चाई के साक्षी है, यह तुम्हारे लिए मेरे शब्द नहीं है, बल्कि इन पर तुम्हारा जीवन निर्भर है. ( विधि- विवरण 32:47). इनका विवरण दिया गया है. जिससे तुम विश्वास करो कि ईसा मसीह ही ईश्वर के पुत्र है और विश्वास करने से उनके नाम द्वारा जीवन प्राप्त करो.(योहन 20:31).
बाइबल पढ़ते समय इस बात की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. इस पाठ में आमंत्रण का भाव निहित है. इसमें लेखक पाठकों को महत्वपूर्ण संदेश संप्रेषित करते हैं. पाठक यह आमंत्रण और अस्वीकार कर , साहित्य अथवा इतिहास के रूप में भी बाइबल पढ़ सकता है. किंतु वह आमंत्रण स्वीकार भी कर सकता है. तभी वह यथोचित पाठ प्रारंभ करता है. ऐसे पाठ में पाठक लेखक के साथ संवाद प्रारंभ करने को तत्पर होता है. लेखक अपने विश्वास का साक्ष्य देता है और वही विश्वास पाठक में उत्पन्न होता है. ऐसे संवाद में पुरुषार्थ और मानव अस्तित्व के मूलभूत प्रश्न उठते हैं. याध्पी बाइबल और उसमें प्रतिपादित विश्वास, जिसको अपने के लिए लेखक अग्रहण पूर्ण आमंत्रण देता है, इतिहास विशेष पर आधारित है, तथापि समस्त मानव इतिहास उनका लक्ष्य है. बाइबल के लेखक ऐसे संदेश के वाहक थे, जिसको पाने वाला मानव मात्र है. चाहे वह किसी देश या काल का हो. युगों से विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों की भक्ति इसी मंडलियों इस पवित्र ग्रंथ से आत्मिक पोषण पाती रहती है, उसका मनन कर वे उसे अपने जीवन में चरितार्थ करने की कोशिश करती रहती है. बाइबल का पाठ करने से मनुष्य विश्वास का जीवन बिताना सीख लेता है, तथा यही विश्वास उसे पुनः बाइबिल में पैठने की प्रेरणा देता है.
The Church has recognized all these writings because the Church considers them to be the words of God. The writings of the Bible are the original and exclusive words of God. The Church believes so. Paul made this clear while writing to Timothy: The Scriptures can give you knowledge of the salvation which comes through faith in Jesus Christ. All Scripture is God-breathed and is useful for teaching, for refuting wrong ideas, for correcting life and for giving instructions for good conduct, so that one becomes capable of doing every kind of good work. (2 Timothy 3:15-17)
Tuesday, December 3, 2024
बाइबल: उत्पत्ति और संरचना.
बाइबल: उत्पत्ति और संरचना.
बाइबल क्या है?
मसीह भाई और बहनों . बाइबल की विषय सूची पर सरसरी दृष्टि डालते ही पाठक समझ आएगा कि यह एक पुस्तक नहीं, वरन् अनेक रचनाओं का संकलन है.यही नहीं इसकी पुस्तकों के प्राक्कथनों सही है विदित हो जाएगा कि इनके रचना कालों का विस्तार 10 शताब्दियों से अधिक है. यह पुस्तक कई लेखकों की रचनाएं हैं, जिनकी मूल भाषा कभी इब्रानी है और कभी यूनानी है. उनके साहित्यिक शैली में भी विभिन्नता पाई जाती है. इनमें कहीं ऐतिहासिक वृतांत है, कहीं काव्य कहीं नियमावली कहीं उपदेश कहीं पत्र और कहीं जीवन- रचित.
एक तिहाई मानव जाति द्वारा पवित्र माने जाने वाले इस ग्रंथ का सामान्य नाम बाइबल है. बाइबल शब्द यूनानी शब्द बीब्लोक से उत्पन्न है, जिसका अर्थ पुस्तक है.
वर्तमान बाइबल
वर्तमान बाइबल की 73 पुस्तकों में 46, अर्थात बाइबल की प्राचीनतम रचनाएं, ईसा मसीह के समय किसी न किसी रूप में विद्यमान थी. वह यह यहूदियों द्वारा आदर से संरक्षित थी और वे उन्हें इस वाणी का दर्जा देते तथा अपनी धार्मिक जीवन की नियामक समझते थे.
ईसवी सन की पहली शताब्दी:-
ईसवी सन की पहली शताब्दी में नवगठित ईसाई शिष्य मंडली ने अधिकांश प्राचीन धर्म पुस्तकों को मान्यता दी और वह उन्हें अपने धार्मिक विरासत समझने लगी. यद्यपि वह इन पुस्तकों को, विशेषता: भजनों और नबियों ग्रंथो को, अपने दृष्टिकोण से देखने लगी. अपने पुनरुत्थान के बाद अपने भक्त शिष्यों के साथ रहते समय ईशा ने इस भेद का उद्घाटन कर उन्हें यह नया दृष्टिकोण प्रदान किया था के प्राचीन रचनाएं विशेषता: भविष्यवाणीयां, अपने आप में तथा उनके मुक्तिदायक जीवन मृत्यु और पुनर्वस्थान में चरितार्थ हो गई है. ईशा ने एक प्रसिद्ध प्रसंग में अपने दो शिष्यों को इस शिक्षा का आभास दिया था.नबियों ने जो कुछ कहा है तुम उसे पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो! क्या यह आवश्यक नहीं था कि मसीह वह सब सहे और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें? तब ईशा ने मूसा से लेकर अन्य सब नबियों का हवाला देते हुए, अपने विषय में जो कुछ धर्म ग्रंथ में लिखा है वह सब उन्हें समझाया. (लुकस 24:25-27). सभी शिष्यों से विदा होने के पहले उन्होंने पुनः यह शिक्षा दी थी मैंने तुम्हारे साथ रहते समय कुछ लोगों से कहा था कि जो कुछ मूसा के संहिता में और नबियों में तथा भजनों में मेरे विषय में लिखा है, सबका पूरा हो जाना आवश्यक है. तब उन्होंने उनके मन का अंधकार दूर करते हुए उन्हें धर्म ग्रंथ का मर्म समझाया और उनसे कहा, ऐसा ही लिखा है कि मसीह है दु:ख भोगेंगे, तीसरे दिन मृतकों में से जी उठेंगे और उनके नाम पर जेरूसलम से लेकर सभी राष्ट्र को पाप क्षमा के लिए पश्चाताप का उपदेश दिया जाएगा. तुम इन बातों के साक्षी हो (लुकस 24:44-48). अतः ईशा की शिष्य मंडली, अर्थात कलीसिया मैं यह विश्वास पैदा हो गया कि हम लोग ही प्राचीन यहूदी धार्मिक साहित्य पूर्ण रूप से समझ सकते हैं.
ईसवी सन की पहली शताब्दी के दौरान ईसीई उपदेशको ने अनेक रचनाएं लिखी, जिन में ईशा की शिक्षा की व्याख्या पाई जाती है और नवोिदत ईसाई धार्मिक जीवन के स्वरूप पर प्रकाश डाला जाता है, उदाहरणार्थ, पुलिस और अन्य शिष्यों के पत्र, चार सुसमाचार, लुकस का प्रेरित- चरित्र और योहन का प्रकाशना ग्रंथ. इन रचनाओं को धीरे-धीरे ईश्वर की वाणी का दर्जा प्राप्त हो गया और फलत: वे बाइबिल में सम्मिलित की गई. निष्कर्ष यह निकलता है कि बाइबल के पूर्वार्ध की पुस्तकों की उत्पत्ति यहूदी राष्ट्र में हुई थी, तथापि उनके प्राचीन रचनाओं के साथ ईसाई युग की आवर्चीन रचनाओं को संपूर्ण बाइबल अर्थात इसी संपत्ति समझा जाने लगा. ईसाई कलीसिया को इन प्राचीन पुस्तक का अभिप्राय पहचान का अधिकार है, तथा इस अधिकार से अर्वाचीन साहित्य की रचना हुई है.
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी. धन्यवाद..
Bible: Origin and Structure.
What is the Bible?
Brothers and sisters of Christ. A cursory glance at the contents of the Bible will make the reader understand that it is not just one book, but a compilation of many works. Not only this, if the prefaces of its books are correct, it will be known that the period of their creation is more than 10 centuries. This book is the work of many authors, whose original language is sometimes Hebrew and sometimes Greek. There is also a difference in their literary style. Some of them are historical accounts, some are poems, some are manuals, some are sermons, some are letters and some are biographies.
The common name of this book, which is considered holy by one-third of the human race, is the Bible. The word Bible is derived from the Greek word beblok, which means book.
The present Bible
Out of the 73 books of the present Bible, 46, that is, the oldest works of the Bible, existed in some form or the other at the time of Jesus Christ. It was preserved with respect by the Jews and they gave them the status of speech and considered them the regulator of their religious life.
First century A.D.
In the first century A.D. the newly emerging Christian community accepted most of the ancient scriptures and began to consider them their religious heritage, although they began to view these scriptures, especially the Psalms and the Prophets, from their own perspective. After his resurrection, while living with his devoted disciples, Jesus revealed to them the secret that the ancient scriptures, especially the prophecies, were fulfilled in himself and in his redemptive life, death and resurrection. Jesus gave a hint of this teaching to two of his disciples in a famous passage: "How slow of heart you are to believe what the prophets have spoken! Was it not necessary for the Christ to suffer all this and thus enter into his glory? Then Jesus explained to them everything that was written about himself in the scriptures, citing all the prophets from Moses onwards (Luke 24:25-27). Before bidding farewell to all the disciples, he again taught that while I was with you, I told some people that whatever is written about me in the law of Moses, in the prophets and in the hymns, it is necessary that everything should be fulfilled. Then he cleared the darkness of their minds and explained to them the essence of the religious scriptures and said to them, it is written that Christ will suffer, will rise from the dead on the third day and in his name, repentance will be preached to all the nations from Jerusalem for forgiveness of sins. You are witnesses of these things (Luke 24:44-48). Therefore, the disciples of Jesus, i.e. the church, became convinced that only we can understand the ancient Jewish religious literature completely.
During the first century AD, Christian preachers wrote many works that explained the teachings of Jesus and shed light on the nature of the nascent Christian religious life, for example, the letters of Paul and the other disciples, the four Gospels, the Acts of Luke and the Revelation of John. These works gradually acquired the status of the word of God and were consequently included in the Bible. The conclusion is that the books of the first half of the Bible originated in the Jewish nation, however, their ancient works along with the modern works of the Christian era came to be considered the complete Bible, i.e. its property. The Christian church has the right to identify the meaning of these ancient books, and this right has led to the creation of modern literature.
I hope this information will be useful for you. Thank you..
Monday, December 2, 2024
बाइबल पढ़ने के 5 कारण:
बाइबिल को दुनिया भर में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला और सबसे अधिक प्रभावशाली पवित्र पुस्तक माना जाता है। यह लाखों लोगों के जीवन को बदल चुकी है और आज भी बदल रही है।बाइबल हमें सिखाता है कि कैसे परमेश्वर से प्रेम करें, अपने पड़ोसी से प्रेम करें, और अपने जीवन को उसके अनुसार जीएं। आईऎ हम जाने की बाइबल हमें क्यों पढ़ना चाहिए. इसके प्रमुख पांच कारण….
बाइबल पढ़ने के 5 कारण:
* आध्यात्मिक विकास:
बाइबल में ईश्वर के वचन और मार्गदर्शन शामिल हैं, जो व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से विकसित करने में मदद करते हैं। यह प्रार्थना, ध्यान, और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है।
* जीवन की अर्थ और उद्देश्य का समझ:
बाइबल हमें जीवन के अर्थ और उद्देश्य को समझने में मदद करती है। यह हमें बताती है कि हम इस दुनिया में क्यों हैं और हमें कैसे जीना चाहिए। यह हमें आशा और उद्देश्य प्रदान करती है, जिससे हम अपने जीवन में सार्थकता महसूस कर सकते हैं।
* मार्गदर्शन और नेतृत्व:
बाइबल में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन और नेतृत्व शामिल है, जैसे कि परिवार, करियर, रिश्ते, और नैतिकता। यह हमें सही निर्णय लेने और जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है।
* आंतरिक शांति और संतुष्टि:
बाइबल हमें आंतरिक शांति और संतुष्टि प्रदान करती है। यह हमें ईश्वर के साथ एक गहरा संबंध विकसित करने में मदद करती है, जो हमें आनंद और आत्म-संतुष्टि का अनुभव करने में सक्षम बनाती है।
* आशा और उम्मीद:
बाइबल हमें आशा और उम्मीद प्रदान करती है, भले ही हम कठिन समय से गुजर रहे हों। यह हमें याद दिलाती है कि ईश्वर हमेशा हमारे साथ है और हमें कभी नहीं छोड़ेगा। यह हमें आशा रखने और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव करने के लिए प्रेरित करती है।
कुल मिलाकर, बाइबल पढ़ना हमारे जीवन को समृद्ध और अधिक सार्थक बनाने का एक शक्तिशाली तरीका है। यह हमें आध्यात्मिक, नैतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक रूप से समृद्ध बनाती है।
The Bible is considered the most read and most influential HOLY BOOK in the world. It has changed and continues to change the lives of millions of people. The Bible teaches us how to love God, love our neighbor, and live our lives accordingly. Let us know why we should read the Bible. Here are five top reasons….
5 Reasons to Read the Bible:
* Spiritual Growth:
The Bible contains God's words and guidance, which help a person grow spiritually. It promotes spirituality through prayer, meditation, and religious rituals.
* Understanding the meaning and purpose of life:
The Bible helps us understand the meaning and purpose of life. It tells us why we are in this world and how we should live. It gives us hope and purpose, allowing us to feel meaning in our lives.
* Guidance and Leadership:
The Bible contains guidance and leadership on various aspects of life, such as family, career, relationships, and morality. It helps us make the right decisions and face life's challenges.
* Inner Peace and Satisfaction:
The Bible gives us inner peace and satisfaction. It helps us develop a deeper relationship with God, which enables us to experience joy and self-satisfaction.
* Hope and Expectation:
The Bible gives us hope and expectation, even when we are going through difficult times. It reminds us that God is always with us and will never abandon us. It inspires us to have hope and make positive changes in our lives.
Overall, reading the Bible is a powerful way to make our lives richer and more meaningful. It enriches us spiritually, morally, culturally, and literaryly.
Tuesday, November 26, 2024
प्रभु यीशु मसीह की आशीष पाने के लिए याद रखें ,यह पांच बातें हैं:
प्रभु यीशु मसीह की आशीष पाने के लिए याद रखें ,ये पांच बातें हैं:
1. प्रार्थना:
नियमित रूप से प्रभु से बात करें। अपनी चिंताओं, धन्यवाद और अनुरोधों को व्यक्त करें।
2. बाइबल पढ़ना:
बाइबल में परमेश्वर का वचन है। इसे नियमित रूप से पढ़ें और उस पर मनन करें।
3. दूसरों की सेवा:
दूसरों की मदद करने से आप प्रभु के प्रेम को प्रकट करते हैं।
4. कलीसिया में भाग लेना:
अन्य विश्वासियों के साथ मिलकर प्रभु की उपासना करें।
5. पवित्र आत्मा से भरना:
पवित्र आत्मा आपको शक्ति और मार्गदर्शन देगा।
ये कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं, लेकिन इनके अलावा भी कई अन्य तरीके हैं जिनसे आप प्रभु की आशीष पा सकते हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप किसी चर्च या मसीही भाई से संपर्क कर सकते हैं।
प्रभु यीशु आपको आशीर्वाद दें! आमेन!
क्यों है वेलांकन्नी प्रसिद्ध?
वेलांकन्नी तमिलनाडु में एक बहुत ही पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थस्थल है, जो मदर मैरी (माता मरियम) को समर्पित है। यहां माता मरियम के कई चमत्कारिक दर्शन होने की वजह से यह स्थान हम धार्मिक लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
क्यों है वेलांकन्नी प्रसिद्ध:
माता मरियम के दर्शन.
16वीं और 17वीं शताब्दी में माता मरियम ने यहां तीन बार दर्शन दिए थे, जिससे यह स्थान आस्था का केंद्र बन गया।
चमत्कार.
इन दर्शनों के साथ कई चमत्कार जुड़े हुए हैं, जैसे कि बीमारों का स्वस्थ होना, अपंगो का चलना और अन्य अद्भुत घटनाएं।
तीर्थयात्री.
हर साल लाखों तीर्थयात्री यहां माता मरियम के दर्शन करने आते हैं।
माता मरियम की आशीष कृपया आपके परिवार पर बनी रहे. आमेन!
इन दर्शनों के साथ कई चमत्कार जुड़े हुए हैं, जैसे कि बीमारों का स्वस्थ होना, अपंगो का चलना और अन्य अद्भुत घटनाएं।
माता मरियम की आशीष और कृपा आपके परिवार पर बनी बनी रहे. आमेन !
Here are five things to remember to receive the blessing of the Lord Jesus Christ:
1. Prayer:
Talk to the Lord regularly. Express your concerns, thanks, and requests.
2. Bible reading:
The Bible contains God's Word. Read it regularly and meditate on it.
3. Serving others:
By helping others, you show the Lord's love.
4. Attending church:
Worship the Lord with other believers.
5. Being filled with the Holy Spirit:
The Holy Spirit will give you strength and guidance.
These are some important things, but there are many other ways to receive the Lord's blessing.
For more information, you can contact a church or Christian brother.
May the Lord Jesus bless you! Amen!
Monday, November 18, 2024
पवित्र रोजरी माला विनती !
क्रुस का चिन्ह- पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर . आमेन.
प्रेरितों का धर्मसार
मैं स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टि करता.सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर,और उसके एक़लौते पुत्र अपने प्रभु यीशु क्राइस्ट में विश्वास करता (करती )हूं.पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया,कुंवारी मरियम से जन्मा, पोंतुस पिलातुस के समय दुख भोगा,. क्रुस पर चढ़ाया गया,मर गया और दफनाया गया. वह अधोलाेक में उतरा, और तीसरे दिन मृतकों में से फिर से जी उठा; वह स्वर्ग में आरोहित हुआ सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर के दाहिने और विराजमान है; वहां से वह जीवितों और मृतकों का न्याय करने आएगा.मैं पवित्र आत्मा, पवित्र कैथोलिक कलीसिया, धर्मियों की सहभागिता, पापों की क्षमा , देह के पुनरुत्थान और अनंत जीवन में विश्वास करता (करती) हूं. आमेन .
प्रभु की विनती
हे पिता हमारे तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्रा किया जाए, तेरा राज्य आए, तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में है वैसी पृथ्वी पर भी पूरी हो. हमारे प्रतिदिन का आहार आज हमें दे और हमारे अपराध हमें क्षमा कर जैसे हम भी अपने अपराधियों को क्षमा करते हैं और हमें परीक्षा में न डाल परंतु बुराई से बचा. आमेन
प्रणाम मारिया
प्रणाम मारिया,कृपा पूर्ण प्रभु तेरे साथ है, धन्य तू स्त्रियों में और धन्य तेरे गर्भ का फल येशु. हे संत मारिया परमेश्वर की मां,प्रार्थना कर हम साथियों के लिए अब और हमारे मरने के समय . आमेन.( तीन बार प्रणाम मारिया)
आनंद के पांच भेद ( सोमवार और शनिवार को)
पहला भेद :- गेब्रियल दूत मरियम को संदेश देते हैं---
हे मां मरियम, जिस तरह आप ईश - वचन को निभाने के लिए तैयार हो गई, इस तरह हमें भी अपने सभी कार्यों में ईश वचन को निभाने में मदद कीजिए.
(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
दूसरा भेद :- मरियम एलिजाबेथ से भेंट करती है-----
हे माता मरियम! दूसरों की सहायता एवं उनकी सेवा करने के अवसरों का सही रूप से उपयोग करने के लिए हमें आशीष एवं अनुग्रह दीजिए.
(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
तीसरा भेद:- हमारे प्रभु यीशु जन्म लेते हैं------
हे मां ! जीवन की मुसीबत एवं दुख संकटों को ईश्वरी इच्छा मानकर उन्हें स्वीकार करने का अनुग्रह प्रदान कीजिए.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
चौथा भेद:- बालक यीशु मंदिर में चढ़ाए जाते हैं------
हे मां मरियम ! हमारा सब कुछ ईश्वरका दिया हुआ वरदान और आशीष समझकर, उन्हें ईश्वर को समर्पित करके जीवन बिताने के लिए हमारी सहायता कीजिए.
(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
पांचवा भेद :- बालक यीशु मंदिर में पाए जाते हैं-------
हे मां ! प्रभु यीशु से हमें दूर करने वाली सभी माध्यमों एवं विचारों का त्याग करने तथा यीशु के समीप आने के सभी मार्गों को अपनाने के लिए हमें आशीष प्रदान कीजिए.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार , हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
ज्योति के पांच भेद( गुरुवार को )
पहले भेद:- यर्दन नदी में यीशु बपतिस्मा ग्रहण करते हैं-----
हे माता मरियम हमें भी पिता ईश्वर की इच्छा पूरी करने वाले
पुत्र-पुत्रियां बना दे.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार , हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
दूसरा भेद:- कान्हा के विवाह भोज में यीशु अपने आप को व्हाट्सएप करते हैं-------
हे मां! हमें ऐसा वर दे कि हम सदा तेरे पुत्र की इच्छा अनुसार जीवन बिता सके.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
तीसरा भेद:- मन परिवर्तन के आह्वान के साथ यीशु ईश्वर के राज्य की घोषणा करते हैं-------
हे मां ! पश्चाताप के द्वारा हम पापों से मुक्ति पाकर अपने भले कर्मों से तेरे पुत्र की साक्षी बने! (है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
चौथा भेद:- रूपांतरण हो जाता है---- हे मां हमें ऐसी कृपा दे कि हम पवित्र आत्मा की प्रेरणा में बढ़ते जाएं और सदैव ईश्वर की महिमा और स्तुति के लिए काम करते रहे.
(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
पांचवा भेद:- पास्का रहस्य की संस्कारिक अभिव्यक्ति के रूप मे युखरिस्त की स्थापना करते हैं.-----
हे मां मरियम, पवित्र बलिदान से प्रभावित होकर, हमें स्वयं को दूसरों की सेवा में समर्पित करने की कृपा दें.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
दु:ख के पांच भेद( मंगलवार , शुक्रवार )
पहला भेद:- बारी में यीशु के प्राण पीड़ा----- है व्याकुल माता मरियम, मनुष्य के पापों को याद करके दु:खी दिल से प्रायश्चित करने की शक्ति हमें प्रदान कीजिए.
(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
दूसरा भेद:- यीशु कोड़े से मारे जाते हैं. -----
हे मां मरियम, हमें अनैतिक एवं अधार्मिक मार्गो से प्राप्त सुख सुविधाओं से बचाए रखिए.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
तीसरा भेद:-- यीशु को कांटो का मुकुट पहनाया जाता है---
हे मां मरियम ! यीशु की इच्छा के विरुद्ध किसी भी काम और विचार को हमारे मन मस्तिक में प्रवेश करने से बचाई रखिए.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
चौथा भेद:---- यीशु अपना क्रुस ढोते हैं.-------
हे मां , अपमान और दुख संकट को धीरज के साथ सहने में हमारी मदद कीजिए.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
पांचवा भेद:--- येस क्रूस पर ठोकर जाते और मर जाते हैं.
हे मां मरियम, हमें हमारे सभी बुरे विचारों को त्याग कर, विनम्रता समिता और सहनशीलता का जीवन बिताने में सहायता कीजिए.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
महिमा के पांच भेद:- ( बुधवार, रविवार )
पहले भेद:---- यीशु मृतकों में से उठाते हैं----
हे मां मरियम, पुनर्वस्थान के लिए हमें अपने शरीर को पवित्र रखने में हमारी मदद कीजिए.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
दूसरा भेद:--- यीशु स्वर्ग चढ़ते हैं.
हे मां , हमारे हृदय में स्वर्ग के प्रति जिज्ञासा, प्रेम तथा इच्छा भर दे.(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
तीसरा भेद:---- पवित्र आत्मा प्रेरितों पर उतरते हैं.
हे मां मरियम, पवित्र आत्मा के सानिध्य के द्वारा हमारे जीवन को सही मार्ग पर ले चलने में सहायता कीजिए.
(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
चौथा भेद:---- मरियम स्वर्ग में उठा ली जाती है.
हे मां मरियम, हमारे मरने के समय हमें स्वर्ग लोग ले जाने के लिए हमारे समीप हमेशा रहिए.
(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
पांचवा भेद:--- मरियम स्वर्ग में रानी का मुकुट पाती है.
हे मां मरियम, स्वर्गीय भाग्य को देखते हुए इस लोक के दुख एवं संकटों को खुशी के साथ स्वीकार करने के लिए हमें शक्ति प्रदान कीजिए.
(है पिता हमारे---------
प्रणाम मरिया 10 बार ,
हे मेरे येशु हमारे पापों को क्षमा कर, नरक की अग्नि से हमें बचा, सारी आत्माओं को स्वर्ग में ले जा विशेष कर जिन्हें तेरी दया की अधिक आवश्यकता है)
प्रणाम रानी
प्रणाम रानी! दया की मां, हमारा जीवन, हमारे मधुरता और आशा तुझे प्रणाम. हम हवा की निर्वासित संतान तुझे पुकारते हैं.हम इस दुख पूर्ण संसार में रोते और विलाप करते हुए तेरे नाम लेते हैं. है हमारी माता ! कृपया हम पर दया दृष्टि का और हमारे इस निर्वासन के बाद अपने गर्भ का पवित्र फल यीशु हमें दिखा.
हे दयालु है ! प्रेममय ! हैयती मधुर कुंवारी मारिया!
हे परमेश्वर के पवित्र मां, हमारे लिए प्रार्थना कर.
क्राइस्ट के प्रतिज्ञाओं के योग्य बन जाए.
कुंवारी मरियम की स्तुति विनती
हे प्रभु हम पर दया कर. हे प्रभु हम पर दया कर.
एक क्राइस्ट हम पर दया कर. हे क्राइस्ट हम पर दया कर.
हे प्रभु हम पर दया कर. हे प्रभु हम पर दया कर.
हे क्राइस्ट हमारी विनती सुन. हे क्राइस्ट हमारी विनती पूरी कर.
स्वर्गवासी पिता परमेश्वर. हम पर दया कर.
पुत्र ईश्वर दुनिया के मुक्तिदाता. हम पर दया कर.
पवित्र आत्मा ईश्वर. हम पर दया का.
पवित्र त्रित्व एक ही परमेश्वर. हम पर दया कर.
संत मारिया. हमारे लिए प्रार्थना कर.
परमेश्वर के पवित्र मन. हमारे लिए प्रार्थना कर
कुंवारी की पवित्र कुंवारी. हमारे लिए प्रार्थना कर.
क्राइस्ट की माता. हमारे लिए प्रार्थना कर.
ईश्वरी कृपा की माता ------. ----- -------
अति निर्मला माता -------- ---- --------
अति शुद्ध माता. .......... ........ .........
अछूति माता. ...................................
निष्कलंक माता ........... ...................
दुलार योग्य माता. ................................
प्रशंसनीय माता. हमारे लिए प्रार्थना कर.
सुसंपति माता. .....................................
सृज़न हर की माता. ..................................
बचाने हरे की माता. ................................
अति चौकस कुंवारी. ...............................
आदर योग्य कुंवारी. ...............................
स्तुति योग्य कुंवारी. ...............................
शक्तिमान कुंवारी. हमारे लिए प्रार्थना कर.
दयालु कुमारी. ..............................
ईमानदार कुमारी. ...............................
न्याय के दर्पण. .................................
प्रज्ञा के सिंहासन. ....................................
हमारे आनंद की जड़. ...................................
आदर के पात्र . ,.................................
भक्ति के उत्तम पात्र. हमारे लिए प्रार्थना कर.
आत्मिक गुलाब.
दाऊद के गढ़.
हाथी दांत के गढ़. हमारे लिए प्रार्थना कर.
सोने के घर.
नियम के अरका.
स्वर्ग के द्वार.
भर के तारे. हमारे लिए प्रार्थना कर.
रोगियों के स्वास्थ्य.
पपिया की शरण. हमारे लिए प्रार्थना कर.
दुखियों की दिलासा.
क्रिस्तानो की सहायता.
भूतों की रानी.
धर्मपुरखों को की रानी.
आगम कहने वालों की रानी. हमारे लिए प्रार्थना कर.
प्रेरितों की रानी.
लहू गवाहों की रानी.
धर्म धर्म गवाहों की रानी.
कुंवारीयों की रानी.
रानी जो आदि पाप रहित गर्भ में पड़ी. हमारे लिए प्रार्थना कर.
स्वर्ग में उदग्रहित रानी.
अति पवित्र माला की रानी.
शांति की रानी.
परिवारों की रानी.
कार्मल की रानी. हमारे लिए प्रार्थना कर.
हे ईश्वर की मेमने, तु संसार के पाप हर लेता है.
हे प्रभु हमें क्षमा कर.
हे परमेश्वर की मेमने, तू संसार के पाप हर लेता है.
हे प्रभु हमारी विनती पूरी कर.
हे परमेश्वर के मेमने, तू संसार के पाप हर लेता है.
हे प्रभु हम पर दया कर.
Saturday, November 16, 2024
ईसा मसीह ने किए थे,अपने जीवन में ये 5 बड़े चमत्कार.Jesus Christ did these 5 big miracles in his life
ईसा मसीह ने किए थे,अपने जीवन में ये 5 बड़े चमत्कार
यीशु को जोशुआ कहने लगे, फिर जीसस और फिर जीसस क्राइस्ट और ईसा मसीह कहा जाने लगा। 25 दिसंबर के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है जिसे क्रिसमस कहते हैं। उनका जन्म फिलिस्तीन क्षेत्र के बेथलहम में हुआ था। वे नाजरथ के एक बढ़ई के पुत्र थे। उनकी माता का नाम मैरी था। प्रभु ईसा मसीह ने अनेक चमत्कार किए. आईऐ हम जानेंगे की प्रभु मसीह ने ऐसी कौन-कौन से चमत्कार किए हैं!
पहला चमत्कार:-
क़ाना के विवाह में चमत्कार -: तीसरे दिन गैलीलियो के काना में एक विवाह था.ईसा की माता वही थी.ऐसा हो किसी से भी विवाह में आमंत्रित थे.
अंगूरी समाप्त हो जाने पर ईसा की माता ने उनसे कहा,उन लोगों के पास अंगूरी नहीं रह गई है. ईसा ने उत्तर दिया, भद्रे! इससे मुझ को और आपको क्या? अभी तक मेरा समय नहीं आया है. उनकी माता ने सेवकों से कहा, “ वे तुम लोगों से जो कुछ कहे वही करना”.
वहां यहूदियों के शुद्धिकरण के लिए पत्थर के चार मटके रखे थे. उन में दो-दो तीन-तीन मन समता था. प्रभु यीशु ने सेवकों से कहा, मटका में पानी भर दो. सेवकों ने उन्हें लबालब भर दिया. फिर प्रभु यीशु ने उनसे कहा, अब निकल कर भोज के प्रबंधक़ के पास ले जाओ. उन्होंने ऐसा ही किया. प्रबंधक ने वह अपनी चखा, जो अंगूरी बन गया था.( संत योहन:-2-1,9) इस प्रकार से प्रभु यीशु ने अपना पहला चमत्कार किया.
दूसरा चमत्कार:-रोटियां का चमत्कार—.
इसके बाद Prabhu yeshu Masih गैलीलिया अर्थात तिबेरियस के समुद्र के उसे पर गए.एक विशाल जन समूह उनके पीछे हो लिया , क्योंकि लोगों ने वह चमत्का देखे थे जो प्रभु यीशु मसीह बीमारियों के लिए करते थे. यीशु मसीह पहाड़ी पर चढ़े और वहां अपने शिष्यों के साथ बैठ गए. यहूदियों का पास्क़ापर्व निकट था.प्रभु यीशु ने अपनी आंखें ऊपर उठाई और देखा कि एक विशाल जन समूह उनकी और आ रहा है.उन्होंने फिलिप से यह कहा,” हम इन्हें खिलाने के लिए कहां से रोटियां खरीदेंगे? उन्होंने फिलिप की परीक्षा लेने के लिए यह कहा.वे तो जानते ही थे कि वह क्या करेंगे.फिलिप ने उन्हें उत्तर दिया, 200 दिनार की रोटियां भी इतनी नहीं होगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके. उनके शिष्य में एक, सिमोन पेत्रुस के भाई एंड्रियास ने कहा, यहां एक लड़के के पास जो की पांच रोटियां और दो मछलियां है,पर यह इतने लोगों के लिए क्या है? प्रभु यीशु ने कहा, लोगों को बैठा दो. प्रभु यीशु ने रोटियां ले ली, धन्यवाद की प्रार्थना पड़ी और बैठे हुए लोगों में उन्हें उसकी इच्छा भर बटवाया. उन्होंने मछलियां भी इसी तरह बटवायी. जब लोग खाकर तृप्त हो गए तो प्रभु यीशु मसीह ने अपने शिष्यों से कहा, बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बर्बाद न हो.इसलिए शिष्यों ने उन्हें बटोर लिया और उन टुकड़ों से 12 टोकरी भर जो लोगों के खाने के बाद जो की पांच रोटियां से बच गए थे.
लोग यीशु मसीह का यह चमत्कार देखकर बोल उठे,निश्चय ही यह वे नबी है जो संसार में आने वाले हैं.(संत योहन:-6-14)
तीसरा चमत्कार:- यीशु ने लाज़रुस को ज़िंदा किया.
बैतनियाह नाम के गाँव में यीशु के तीन करीबी दोस्त रहते थे। वे थे लाज़र और उसकी दो बहनें, मरियम और मारथा। एक दिन जब यीशु यरदन के उस पार था तो मरियम और मारथा ने उसे एक ज़रूरी खबर भेजी: लाज़रुस बहुत बीमार है। तू जल्दी आ जा!’ मगर यीशु फौरन नहीं गया। वह दो दिन वहीं रुका रहा और फिर उसने अपने चेलों से कहा, ‘चलो, हम बैतनियाह चलें। लाज़रुस सो रहा है और मैं उसे जगाने जा रहा हूँ।’ प्रेषितों ने कहा, ‘अगर लाज़र सो रहा है तो वह ठीक हो जाएगा।’ तब यीशु ने उन्हें साफ-साफ बताया, “लाज़रुस मर चुका है।”
जब यीशु बैतनियाह पहुँचा तब तक लाज़रुस को दफनाए चार दिन हो चुके थे। बहुत सारे लोग मारथा और मरियम को दिलासा देने आए थे। जब मारथा ने सुना कि प्रभु यीशु मसीह आया है तो वह फौरन उससे मिलने गयी। उसने प्रभु यीशु मसीह से कहा, “प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।” यीशु ने उससे कहा, ‘तेरा भाई ज़िंदा हो जाएगा। मारथा, क्या तू इस बात पर यकीन करती है?’ मारथा ने कहा, ‘मुझे यकीन है कि जब मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा. तब वह ज़िंदा हो जाएगा।’ प्रभु यीशु मसीह ने उससे कहा, “मरे हुओं को ज़िंदा करनेवाला और उन्हें जीवन देनेवाला मैं ही हूँ।”
फिर मारथा ने जाकर मरियम को बताया, ‘यीशु आया है।’ मरियम भागकर यीशु के पास गयी और उसके पीछे-पीछे लोगों की भीड़ भी गयी। मरियम यीशु के पैरों पर गिर पड़ी और रोती रही। उसने कहा, ‘प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो आज हमारा भाई ज़िंदा होता!’ यीशु देख सकता था कि वह कितनी दुखी है और वह भी रो पड़ा। जब लोगों ने यीशु को रोते देखा तो उन्होंने कहा, ‘देखो, यीशु लाज़रुस से कितना प्यार करता था!’ मगर कुछ ने कहा, ‘उसने अपने दोस्त की जान क्यों नहीं बचायी?’ इसके बाद यीशु ने क्या किया?
प्रभु यीशु मसीह कब्र के पास गया जिसके मुँह पर एक बड़ा-सा पत्थर रखा हुआ था। उसने हुक्म दिया, “पत्थर को हटाओ।” मगर मारथा ने कहा, ‘अब तक तो उसकी लाश में से बदबू आती होगी, क्योंकि चार दिन हो चुके हैं।’ फिर भी उन्होंने पत्थर हटा दिया और प्रभु यीशु मसीह ने प्रार्थना की, ‘पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मेरी सुनी है। मैं जानता हूँ कि तू हमेशा मेरी सुनता है, फिर भी मैं इसलिए सबके सामने यह कह रहा हूँ ताकि ये लोग जान लें कि तूने मुझे भेजा है।’ फिर उसने ज़ोर से पुकारा, “लाज़रुस, बाहर आ जा!” फिर हैरान कर देनेवाली एक घटना घटी: लाज़रुस कब्र में से बाहर आ गया। वह अब भी मलमल के कपड़ों में लिपटा हुआ था। यीशु ने कहा, “इसे खोल दो और जाने दो।”
बहुत-से लोगों ने यह देखकर प्रभु यीशु मसीह है पर विश्वास किया. इस प्रकार से प्रभु यीशु मसीह है ने मरे हुए लाजरूस को मृतकों में से जिंदा किया.(संत योहन :-11-32.44)
चौथा चमत्कार:- प्रभु यीशु मसीह का मृतकों में से जी उठना--
यदि अन्य लोगों को मृतकों में से जीवित करना ही पर्याप्त नहीं था, तो प्रभु यीशु मसीह ने अपने चमत्कारों को और भी आगे बढ़ाया। वह स्वयं मृतकों में से जीवित हो गया। उसे क्रूस पर चढ़ाया गया और हमारे पापों के लिए मर गया, केवल तीन दिन बाद फिर से जीवित होने के लिए, यह उसका सबसे बड़ा चमत्कार था।
पांचवा चमत्कार:-
प्रभु यीशु मसीह दुष्टात्माओं को बाहर निकालता है .
[1] एक भूतग्रस्त लड़के की मदद करना: शिष्यों ने एक भूतग्रस्त लड़के की मदद करने की कोशिश की, लेकिन वे ऐसा करने में असमर्थ रहे। प्रभु यीशु मसीह ने आत्मा को उसे छोड़ने का आदेश दिया और आत्मा चली गई।(मरकुस:- 9:14-29)
[2]अशुद्ध आत्मा को डांटना: एक व्यक्ति जो दुष्टात्मा से ग्रस्त था, चिल्ला रहा था। प्रभु यीशु मसीह ने उस दुष्टात्मा को बाहर निकालकर आस-पास के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया।(मरकुस:-1:23-28 )
[3] दुष्टात्माओं को सूअरों में डालना: इस घटना में, प्रभु यीशु मसीह ने दो व्यक्तियों में से दुष्टात्माओं को सूअरों में डाल दिया (मत्ती 8:28-34)।
सुसमाचारों में, प्रभु यीशु मसीह ने कई चमत्कार और चिह्न दिखाए, जिनमें से प्रत्येक चमत्कारी था और मानवता के प्रति उनके प्रेम और करुणा का प्रमाण था। उन्होंने इन चमत्कारों का उपयोग न केवल लोगों की मदद करने के लिए किया, बल्कि यह भी किया कि जो लोग प्रभु यीशु मसीह के चमत्कारों को देखते और सुनते हैं, उन्हें विश्वास हो कि वे कौन हैं, परमेश्वर के पुत्र और मसीहा।
Jesus Christ did these 5 big miracles in his life
Jesus was called Joshua, then Jesus and then Jesus Christ and Isa Masih. His birthday is celebrated on 25th December which is called Christmas. He was born in Bethlehem of Palestine region. He was the son of a carpenter of Nazareth. His mother's name was Mary. Lord Jesus Christ did many miracles. Let us know what miracles Lord Christ has done!
First miracle: Marriage at Cana:
On the third day, there was a marriage in Cana of Galileo. Jesus' mother was there. Everyone was invited to the marriage.
When the wine was finished, Jesus' mother said to them, they have no wine left. Jesus replied, Sir! What does this matter to me and you? My time has not come yet. His mother said to the servants, "Do whatever he tells you".
There were four stone pots kept there for the purification of the Jews. Each of them contained two to three man of water. Lord Jesus said to the servants, fill the pots with water. The servants filled them to the brim. Then Lord Jesus said to them, now go out and take it to the manager of the banquet. They did the same. The steward tasted it, which had turned into wine. (St. John: 2-1,9) In this way Lord Jesus performed his first miracle.
Second Miracle:- The Miracle of the Loaves—
After this, Jesus went to the sea of Galilee, i.e. Tiberias. A large crowd followed him, because people had seen the miracles that Jesus did for the sick. Jesus went up on a hill and sat there with his disciples. The Jewish Passover was near. Jesus lifted up his eyes and saw a large crowd coming toward him. He said to Philip, “Where will we buy loaves to feed these people?” He said this to test Philip. He knew what he would do. Philip answered, “200 denarii worth of loaves is not enough for everyone to get a little.” One of his disciples, Andreas, brother of Simon Peter, said, “A boy here has five loaves and two fish, but what is that for so many people?” Lord Jesus said, make the people sit down. Lord Jesus took the loaves, recited the prayer of thanks and distributed them among the people sitting as per their wish. He distributed the fish in the same way. When the people were satisfied after eating, Lord Jesus Christ said to his disciples, collect the leftover pieces, so that nothing is wasted. So the disciples collected them and filled 12 baskets with the pieces which were left after the people had eaten, which was from the five loaves.
After seeing this miracle of Jesus Christ, the people said, surely this is the prophet who is going to come in the world. (Saint John:-6-14)
Third Miracle: Jesus Raise Lazarus
Three of Jesus’ closest friends lived in Bethany, a village called Lazarus and his two sisters, Mary and Martha. One day, while Jesus was on the other side of the Jordan, Mary and Martha sent him urgent news: “Lazarus is very sick. Come quickly!” But Jesus didn’t go right away. He stayed there for two days and then said to his disciples, “Let’s go to Bethany. Lazarus is asleep and I am going to wake him up.” The apostles said, “If Lazarus is asleep, he will get well.” Then Jesus told them plainly, “Lazarus is dead.”
By the time Jesus arrived in Bethany, four days had passed since Lazarus had been buried. Many people came to comfort Martha and Mary. When Martha heard that Jesus had come, she immediately went to meet him. She said to him, “Lord, if you had been here, my brother would not have died.” Jesus said to her, “Your brother will come to life. Do you believe that, Martha?” Martha said, “I am sure that when the dead are raised, he will come to life.” Jesus said to her, “I am the one who raises the dead and gives them life.”
Then Martha went and told Mary, “Jesus has come.” Mary ran to Jesus, followed by a crowd of people. Mary fell at Jesus’ feet and wept. She said, ‘Lord, if you had been here today, our brother would be alive!’ Jesus could see how sad she was and he wept. When people saw Jesus weeping, they said, ‘See how much Jesus loved Lazarus!’ But some said, ‘Why didn’t he save his friend’s life?’ What did Jesus do next?
Jesus went to the tomb, which had a large stone placed over it. He ordered, “Remove the stone.” But Martha said, ‘His body must be stinking by now, for it has been four days.’ They removed the stone and prayed, ‘Father, I thank you that you have heard me. I know that you always hear me, but I say this publicly so that these people will know that you have sent me.’ Then he called out loudly, “Lazarus, come out!” Then something astonishing happened: Lazarus came out of the tomb. He was still wrapped in linen cloth. Jesus said, “Untie him and let him go.”
Many people saw this and believed in Jesus Christ. This is how Jesus Christ raised Lazarus from the dead. (St. John 1:11-32.44)
Fourth Miracle: Jesus Resurrected from the Dead --
If raising other people from the dead wasn't enough, the Lord Jesus Christ took His miracles even further. He Himself rose from the dead. He was crucified and died for our sins, only to rise again three days later, this was His greatest miracle.
Fifth Miracle: Jesus Casts Out Demons
[1] Helping a Poisoned Boy: Mark: The disciples tried to help a demon-possessed boy, but they were unable to do so. The Lord Jesus Christ commanded the spirit to leave him and the spirit departed. (Mark: 9:14-29)
[2] Rebuking an Unclean Spirit: A man who was possessed by a demon was screaming. The Lord Jesus Christ amazed the people around by casting out the demon. (Mark: 1:23-28)
[3] Casting Demons into Pigs: In this incident, the Lord Jesus Christ cast the demons out of two men into pigs (Matthew 8:28-34).
In the Gospels, the Lord Jesus Christ performed many miracles and signs, each of which was miraculous and a proof of His love and compassion for humanity. He used these miracles not only to help people, but also so that those who see and hear the miracles of the Lord Jesus Christ would believe in who He is, the Son of God and the Messiah.
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