Tuesday, December 31, 2024

Prayer to God for the new year 2025! नए साल 2025 के लिए परमेश्वर से प्रार्थना !

नए साल 2025 के लिए परमेश्वर से प्रार्थना !

नए साल 2025 के लिए प्रभु यीशु से प्रार्थना करते समय आप अपने दिल की बात सादगी और विश्वास के साथ उनके सामने रख सकते हैं। यहाँ एक प्रार्थना का सुझाव दिया गया है जो नए साल की शुरुआत के लिए मार्गदर्शन कर सकती है:

नए साल  2025 के लिए की प्रार्थना! 

हे प्रिय परमेश्वर , मैं आपके चरणों में धन्यवाद और आभार  के साथ झुकता हूँ।

आपने मुझे अब तक अपनी असीम कृपा से संभाला है, इसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ।
इस नए साल में, मुझे आपकी उपस्थिति, मार्गदर्शन, और प्रेम की आवश्यकता है। मुझे शांति, धैर्य और साहस से भर दें ताकि मैं आपके उद्देश्यों को समझ सकूँ और उन पर चल सकूँ।मेरे परिवार, दोस्तों, और सभी प्रियजनों पर अपनी कृपा बनाए रखें।
हमें स्वास्थ्य, आनंद और आपसी प्रेम में बढ़ने का आशीर्वाद दें।

प्रभु, मुझे सिखाएँ कि मैं आपके वचन का पालन कर सकूँ।
मेरे हृदय को आपके प्रति विश्वास और निष्ठा से भर दें।
इस साल के हर दिन, मुझे आपकी रोशनी में चलने और आपके नाम को महिमा देने की प्रेरणा दें। मैं इस साल को आपके हाथों में सौंपता हूँ। आप जो भी करें, वही मेरे लिए सर्वोत्तम होगा।आपकी इच्छाओं के अनुसार मेरा जीवन चलाएँ। आमेन

बाइबल में दिए गए नए साल के लिए वचन:-

इसायाह का ग्रंथ:-43-18,19 :- पिछली बातें भुला दो, पुरानी बातें जाने दो. देखो, मैं एक नया कार्य करने जा रहा हूं.वह प्रारंभ हो चुका है. क्या तुम उसे नहीं देखते? मैं मर भूमि में मार्ग बनाऊंगा और उजाड़ प्रदेश में पथ तैयार करूंगा.

* संत पेत्रुस का पहला पत्र :-5-7 आप अपनी सारी चिंताएं उस पर छोड़ दे, क्योंकि वह आपकी सुधि लेता है. 

* कुरिथिंयों के नाम दूसरा पत्र :-5.17 :-  इसका अर्थ यह है कि यदि कोई मसीह के साथ एक हो गया है, तो वह  नए सृष्टि बन गया है. पुरानी बातें समाप्त हो गई है और सब कुछ नया हो गया है.

सूक्ति ग्रंथ 3-5.6 :- तुम सारे हृदय से प्रभु का भरोसा करो; अपने बुद्धि पर निर्भर मत रहो. अपने सब कार्यों में उसका ध्यान रखो. वह तुम्हारा मार्ग प्रशस्त कर देगा. 


नए साल 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं! 

यह साल आपके जीवन में ढेर सारी खुशियां, सफलता और समृद्धि लेकर आए। आप अपने हर लक्ष्य को प्राप्त करें और आपके सभी सपने साकार हों। इस नए साल में स्वास्थ्य, शांति और प्रेम आपके जीवन के हर पहलू में झलकें। 

पिता परमेश्वर कि आशीष और कृपा  आपके परिवार  में बने रहे. Happy New Year


Sunday, December 29, 2024

Parable of the lost sheep ! भटकी हुई भेड़ का दृष्टांत !

भटकी हुई भेड़ का दृष्टांत !  parable of the lost sheep ! 

भटकी हुई भेड़ का दृष्टांत, बाइबिल में यीशु मसीह द्वारा दिया गया एक महत्वपूर्ण दृष्टांत है, जो पापी के पश्चाताप और ईश्वर के प्रेम को समझाने के लिए बताया गया है। यह दृष्टांत यीशु मसीह ने यह सिखाने के लिए दिया था कि  परमेश्वर पिता प्रत्येक व्यक्ति को कितना मूल्यवान और प्रिय मानते हैं, विशेष रूप से उन लोगों को जो खो गए हैं (पाप में पड़े हैं) और उन्हें वापस लाने के लिए कितना प्रयास करते हैं।इसका उल्लेख मुख्य रूप से लूका 15:3-7 और मत्ती 18:11-14 में किया गया है।

आइऐ हम इस आर्टिकल में जाने   की बाइबिल में भटकी हुई भेड़ का दृष्टांत,में क्या  लिखा गया है?  

 भटकी हुई भेड़ का दृष्टांत  ![लूका 15:3-7]

प्रभु यीशु का उपदेश सुनने के लिए नातेदार और पापी उनके पास आया करते थे! फरीसी और शास्त्रीय यह कहते हुए भुंभुनाते थे, यह मनुष्य पापियों का स्वागत करता है और उनके साथ खाता पीता है. इस पर यीशु मसीह  ने उनको यह दृष्टांत सुनाया, यदि तुम्हारे 100 भेड़े  हों और उन में एक भी भटक जाए, तो तुम लोगों में कौन ऐसा होगा जो 99 भेड़ों  को निर्जन प्रदेश में छोड़कर न जाए और उसे भटकी हुई को तब तक न खोजता रहे, जब तक वह उसे नहीं पाए? पाने पर वह आनंदित होकर उसे अपने कंधों पर रख लेता है और घर आकर अपने मित्रों और पड़ोसियों को बुलाता है और उनसे कहता है, मेरे साथ आनंद मनाओ, क्योंकि मैं अपनी भटकी हुई  भेड़ को पा लिया है. मैं तुमसे कहता हूं, इसी प्रकार 99 धर्मियों की अपेक्षा जीने पश्चाताप की आवश्यकता नहीं है, एक पश्चातापी पापी के लिए स्वर्ग में अधिक आनंद मनाया जाएगा.


भटकी हुई भेड़ का दृष्टांत  ! [मत्ती 18:11-14]

जो खो गया था उसी को बचाने के लिए मानव पुत्र आया है. तुम्हारा क्या विचार है- यदि किसी के 100 भेड़े हो और उन में एक भी भटक जाए, तो क्या वह 99 भेड़ों को पहाड़ी पर छोड़कर उस भटकी हुई भेड़ को खोजने  नहीं जाएगा ?  और यदि वह उसे पाए,  तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि  उसे उन 99 की अपेक्षा, जो भटकी नहीं थी, उस भेड़ के कारण अधिक आनंद होगा. इसी तरह मेरा स्वर्ग पिता  नहीं चाहता कि उन  नन्हों  में से एक भी खो जाए.

इस दृष्टांत का अर्थ:-   हर व्यक्ति मूल्यवान है 

यह दृष्टांत सिखाता है कि प्रत्येक व्यक्ति  परमेश्वर पिता के लिए अनमोल है।
खोई हुई भेड़ उस व्यक्ति का प्रतीक है जो पाप या अज्ञान के कारण परमेश्वर पिता से दूर हो गया है।दृष्टांत बताता है कि  परमेश्वर पिता हर पापी को वापस बुलाने के लिए सक्रिय प्रयास करते हैं।


* परमेश्वर पिता की करुणा:-चरवाहा परमेश्वर पिता का प्रतीक है जो हर खोए हुए व्यक्ति को खोजते हैं।
परमेश्वर पिता अपने बच्चों को कभी नहीं छोड़ते और उन्हें वापस लाने के लिए पूरी मेहनत करते हैं।

* यह दृष्टांत प्रेम, करुणा, और क्षमा का संदेश देता है।
यह हमें सिखाता है कि हमें भटके हुए लोगों की मदद करनी चाहिए और उनकी वापसी का स्वागत करना चाहिए। साथ ही, यह  परमेश्वर पिता के असीम प्रेम और दया को उजागर करता है, जो हर पापी को अपना मानते हैं।जो जीवन में भटक गए हैं और उनके पुनरुत्थान के प्रयासों में खुशी मनानी चाहिए।

*  परमेश्वर पिता हमें कभी नहीं छोड़ते। चाहे हम कितने ही खोए हुए क्यों न हों, उनका प्रेम हमें हमेशा वापस लाने के लिए तैयार रहता है।


Tuesday, December 24, 2024

Why is Christmas celebrated on 25th December? 25 दिसंबर को क्रिसमस क्यों मनाया जाता है?

25 दिसंबर को क्रिसमस क्यों मनाया जाता है?  


* क्रिसमस 25 दिसंबर को ईसा मसीह (Jesus Christ) के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह दिन ईसाई धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने के पीछे ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं:


* प्रभु यीशु मसीह के जन्म की कहानी बाइबिल में "नया विधान " (New Testament) के दो पुस्तकों, संत मत्ती (st.Matthew) और संत लूका (st. Luke) में वर्णित है। यह कहानी उनके दिव्य जन्म, उनके माता-पिता, और उनके आगमन के विशेष चिह्नों का वर्णन करती है।


* बाइबिल में ईसा मसीह के जन्म की तिथि स्पष्ट रूप से नहीं दी गई है। हालाँकि, चौथी शताब्दी में रोमन साम्राज्य ने 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मान्यता दी।
यह दिन शीत अयनांत (Winter Solstice) के करीब आता है, जब दिन छोटे और रातें लंबी होती हैं, और इसके बाद दिन फिर से बड़े होने लगते हैं। इसे प्रतीकात्मक रूप से "प्रकाश के आगमन" के रूप में देखा गया, जो ईसा मसीह के जीवन से जोड़ा गया।

आईऐ इस लेख में हम जानेंगे कि  पवित्र बाइबल [ THE HOLY BIBLE ] में नया विधान (New Testament) के दो पुस्तकों  संत मत्ती (st.Matthew) और संत लूका (st. Luke) में क्या लिखा गया है?


यीशु के जन्म [लूका 2:1-20 और मत्ती 1:18-25]

1. मरियम और स्वर्गदूत का संदेश:

बाइबिल के अनुसार, मरियम (Mary) एक पवित्र कुंवारी युवती थी, जो युसूफ(Joseph) से विवाह के लिए प्रतिज्ञा कर चुकी थी।स्वर्गदूत गेब्रियल (Gabriel) ने मरियम को संदेश दिया कि वह पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भवती होगी और वह एक पुत्र को जन्म देगी। वह उसका नाम इम्मानुएल रखेगी।"  "इम्मानुएल" का अर्थ है "ईश्वर हमारे साथ।" स्वर्गदूत ने यह भी बताया कि यह बच्चा परमेश्वर का पुत्र होगा और वह संसार का उद्धार करेगा।

2.  युसूफ (Joseph) को स्वर्गदूत का दर्शन:

माता  मरियम की मंगनी युसूफ (Joseph) से हुई थी, परंतु ऐसा हुआ कि उनके एक साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गई. उसका पति युसूफ (Joseph) चुपकै से उसका परित्याग करने की सोच रहा था. क्योंकि वह धर्मी था और मरियम को बदनाम नहीं करना चाहता था.वह इस पर विचार कर ही रहा था कि उसे स्वप्न में प्रभु का दूत यह कहते दिखाई दिया, युसूफ! (Joseph) दाऊद की संतान! अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां लाने में नहीं डरे, क्योंकि उनके जो गर्व है, वह पवित्र आत्मा से है. वह पुत्र प्रसव करेगी और आप उसका नाम ईसा रखेंगे, क्योंकि वह अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा. युसूफ (Joseph) ने मरियम से विवाह किया और परमेश्वर के आदेश का पालन किया।


3. बेथलेहम में यीशु का जन्म:-

उस दिन केसर अगस्तस मैं समस्त जगत की जनगणना की राजाज्ञा  निकाली. यह पहली जनगणना थी और उसे  समय क्विरिनियुस    सीरिया का राज्यपाल था. सब लोग नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने नगर जाते थे. युसूफ दाऊद के घराने और वंशज का था. इसलिए वह गाली लिया के नाज़रथ से यहूदियों में दौड़ के नगर बेथलहम गया, जिससे वह अपनी गर्भवती पत्नी मरियम के साथ नाम लिखवाए. वह वही थे जब मरियम के गर्भ के दिन पूरे हो गए, और उसने अपने वह पहलोठे पुत्रों को जन्म दिया और उसे कपड़ों में लपेटकर जरनी में लिटा दिया; क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं  थी.

4. स्वर्गदूतों का संदेश और गड़रियों का आगमन:-

उस रात, स्वर्गदूतों ने पास के मैदानों में चरवाहों को यीशु के जन्म की सूचना दी। उन्होंने कहा, "आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है।"
चरवाहे तुरंत चरनी के पास गए, यीशु को देखा, और परमेश्वर की महिमा करने लगे।


5. पूर्वज्योतिषी और तारा:-

संत मत्ती के अनुसार, कुछ ज्योतिषी पूरब से आए और उन्होंने एक तारा देखा, जो उन्हें यीशु के पास ले गया।
वे बालक यीशु को सोने, लोबान, और गंधरस के उपहार चढ़ाने आए। यह उपहार उनके राजा, ईश्वर और उनके बलिदान के प्रतीक थे।


6. हेरोद का षड्यंत्र और मिस्र पलायन:-

राजा हेरोद को यीशु के जन्म के बारे में पता चला, और उसने बालक को मारने की योजना बनाई। स्वर्गदूत ने युसूफ (Joseph) को चेतावनी दी, और वह मरियम और यीशु के साथ मिस्र चले गए।


आज के समय में क्रिसमस न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक और सामाजिक उत्सव बन गया है। इस दिन परिवार एक साथ समय बिताते हैं, उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं, और दान करते हैं।


इस तरह, 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने का निर्णय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का परिणाम है।


Why is Christmas celebrated on 25th December? 


* Christmas is celebrated on 25 December as the birthday of Jesus Christ. This day is one of the most important festivals of Christianity. The historical, religious and cultural reasons behind celebrating Christmas on 25 December are:

* The story of the birth of Lord Jesus Christ is described in the Bible in two books of the "New Testament", St. Matthew and St. Luke. This story describes His divine birth, His parents, and the special signs of His arrival.


* The date of birth of Jesus Christ is not clearly given in the Bible. However, in the 4th century the Roman Empire recognized December 25 as the birthday of Jesus Christ. This day comes near the Winter Solstice, when the days become shorter and the nights longer, and then the days start getting longer again. It was seen symbolically as the "coming of light", linked to the life of Jesus Christ.

Come, in this article we will know what is written in the Holy Bible  in the two books of the New Testament, St. Matthew and St. Luke?

The Birth of Jesus [Luke 2:1-20 and Matthew 1:18-25

1. Mary and the angel's message:-   According to the Bible, Mary was a holy virgin who was promised in marriage to Joseph. The angel Gabriel gave the message to Mary that she would be pregnant by the Holy Spirit and would bear a son. Will give birth to.She will name him Immanuel." "Immanuel" means "God with us." The angel also revealed that the child would be the Son of God and that he would save the world.

2. Angel's vision to Joseph:-

Mother Mary was betrothed to Joseph, but before they could live together, Mary became pregnant by the Holy Spirit. Her husband Yusuf was secretly thinking of abandoning her. Because he was righteous and did not want to dishonor Mary. While he was thinking about this, an angel of the Lord appeared in his dream saying, Joseph! Son of David! Don't be afraid to bring your wife Mary with you, because their pride is from the Holy Spirit. She will give birth to a son and you will name him Isa, because he will free his people from their sins. Joseph married Mary and followed God's orders.

3. Birth of Jesus in Bethlehem:-

That day, Caesar Augustus issued a royal order to conduct a census of the entire world. This was the first census and was conducted at the time Quirinius was governor of Syria. Everyone used to go to their respective cities to get their names enrolled. Joseph belonged to the family and descendants of David. So he took abuse and ran from Nazareth among the Jews to the city of Bethlehem, so that he could enroll with his pregnant wife Mary. It was there that the days of Mary's pregnancy were completed, and she gave birth to her firstborn sons and wrapped him in clothes and laid him on the journey; Because there was no room for them in the inn.


4. Message of angels and arrival of shepherds:-

That night, angels announce the birth of Jesus to shepherds in the nearby fields. They said, "Today a Savior is born for you in the city of David."
The shepherds immediately went to the manger, saw Jesus, and began to praise God.

5. Astrologer and Star:-

According to St. Matthew, some wise men came from the east and saw a star, which led them to Jesus.
They came to offer gifts of gold, frankincense, and myrrh to the baby Jesus. These gifts were symbols of their king, God and their sacrifice.


6. Herod's conspiracy and escape to Egypt:-

King Herod learned of Jesus' birth, and planned to kill the child. The angel warned Joseph, and he accompanied Mary and Jesus to Egypt.

Today, Christmas is not only a religious festival, but it has also become a cultural and social celebration on a global scale. On this day families spend time together, exchange gifts, and make donations.

In this way, the decision to celebrate Christmas on December 25 is the result of religious and cultural traditions.



Thursday, December 19, 2024

प्रभु यीशु के आशीष पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए ? What should we do to receive the blessings of Jesus Christ?

प्रभु यीशु के आशीष पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?    

प्रभु यीशु के आशीष पाने के लिए हमें उनकी शिक्षाओं का पालन करना चाहिए और उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और विश्वास रखना चाहिए।जिस प्रकार से प्रभु यीशु के शिष्यों ने प्रभु पर विश्वास करते हुए प्रार्थना   करते रहे .और प्रभु यीशु आशीष के वजह से उन्हें पवित्र आत्मा की प्राप्ति हुई थी. यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो हमें उनके आशीष के योग्य बनाती हैं: 

 

 1. विश्वास और प्रार्थना :-  

*इसलिए मैं तुमसे कहता हूं- तुम जो कुछ प्रार्थना में मांगते हो, विश्वास करो कि वह तुम्हें मिल गया है और वह तुम्हें दिया जाएगा.[ संत मारकुस :-11- 14]

*वह विश्वास पूर्ण प्रार्थना रोगी को बचाएगी और प्रभु उसे स्वास्थ्य प्रदान करेगा यदि उसने पाप किया है, तो उसे क्षमा मिलेगी संत याकूब का पत्र 5-15 ]

 (1) प्रभु यीशु पर सच्चा विश्वास रखें।  

   (2)  नियमित रूप से प्रार्थना करें और उनके मार्गदर्शन की प्रार्थना करें। 

 

 2. प्रेम और दया:-  

प्रेम सहनशील और दयालु है. प्रेम न ईर्ष्या  करता है ,न डिंग मारता ,  न घमंड करता है. प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता. वह अपना स्वार्थ नहीं खोजना. प्रेम ना तो झुन्झूलता है और न बुराई का लेख रखता है. वह दूसरों के पाप से नहीं बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है. वह सब कुछ ढांक देता है, सब कुछ पर विश्वास करता है, सब कुछ किया आशा करता और सब कुछ सह लेता है. [कुरिंथियों के नाम पहला पत्र: 13:-4.7]

(1)यीशु ने हमें सिखाया है कि हमें अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम करना चाहिए जैसे हम खुद से करते हैं।  धर्मग्रंथ कहता है- तुम अपने पड़ोसी को अपने सामान प्यार करो. यदि आप इसके अनुसार सबसे बड़ी आज्ञा पूरी करते हैं, तो अच्छा करते हैं.[संत याकूब का पत्र:-2-8]


 (2) जरूरतमंदों की मदद करें और दूसरों के प्रति दयालु बनें।  


 स्वर्ग के ईश्वर की स्तुति करो.उसका प्रेम अनंत काल तक बना रहता है [स्रोत ग्रंथ(भजन संहिता) 136- 2]

 3. पापों का पश्चाताप :-   

  मैं धर्मियों को नहीं पापियों को पश्चाताप के लिए बुलाने आया हूं.[संत लुकस:-5-32]

मैं तुमसे कहता हूं, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चाताप नहीं करोगे, तो सब के सब उसी तरह नष्ट हो जाएंगे.[संत लुकस:-13-5]

(1)-अपने किए गए पापों के लिए ईमानदारी से पछतावा करें।  

(2)- प्रभु से क्षमा मांगें और सही मार्ग पर चलने का संकल्प लें। 


 

4. बाइबल का अध्ययन:-  

 (1)- बाइबल पढ़ें और उसमें दी गई शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करें।  
 (2)  - विशेष रूप से  प्रभु यीशु के उपदेशों (जैसे कि पर्वत उपदेश) को समझने और जीने का प्रयास करें।  


 5. सच्चा अनुयायी बनें  :-  तुम में ऐसी बात नहीं होगी. जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने. और जो तुम में प्रधान होना चाहता है, वह तुम्हारा दास बन; क्योंकि मानव पुत्र भी अपनी सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है.[संत मत्ती 20-26.28 ]

  (1) - अपने कार्यों और विचारों में ईमानदारी रखें।  
   (2)- हमेशा सत्य बोलें और दूसरों की भलाई के लिए काम करें।  

 6. धैर्य और विश्वास बनाए रखें  :-  भाइयों! जब आप लोगों को अनेक प्रकार के विपत्तियों का सामना करना पड़े तो अपने को धन्य समझिए. आप जानते हैं कि आपका विश्वास का इस प्रकार का परीक्षण धैर्य उत्पन्न करता है. धैर्य को पूर्णता तक पहुंचने दीजिए, जिससे आप लोग स्वयं पूर्ण तथा अनिंद्य बन जाए, और आप में किसी बात की कमी नहीं रहे. [संत याकूब का पत्र 1:- 2.4]

  (1) - कठिन समय में भी प्रभु यीशु पर विश्वास बनाए रखें।  
   (2) - यह समझें कि उनका आशीर्वाद हमेशा सही समय पर आता है।  


यदि आप यीशु के बताए मार्ग पर चलेंगे और उनके प्रति सच्चा प्रेम और समर्पण दिखाएंगे, तो आप उनके आशीर्वाद के पात्र बनेंगे।


What should we do to receive the blessings of  Jesus  Christ?


To receive the blessings of  Jesus Christ, we must follow His teachings and have true faith and belief in Him.The way the disciples of  Jesus Christ kept praying with faith in the Lord, and because of the blessings of Lord Jesus, they received the Holy Spirit.

 Here are some important things that make us worthy of His blessings:-

1. Faith and prayer :-

Therefore I say to you - Whatever you ask in prayer, believe that you have received it and it will be given to you. [St. Mark: -11- 14]


That prayer full of faith will save the sick and the Lord will give him health. If he has sinned, he will be forgiven [Letter of St. James 5-15]

(1) Have true faith in  Jesus  Christ.  
(2) Pray regularly and ask for His guidance.



2. Love and kindness:-

Love is tolerant and kind. Love neither envies, nor brags, nor is proud. Love does not behave indecently. He should not seek his own interests. Love neither gets irritated nor keeps any record of evil. He is pleased not by the sins of others but by their good conduct. He covers all things, believes all things, hopes all things and endures all things. [First Epistle to the Corinthians: 13:-4.7]


(1) Jesus taught us that we should love our neighbor as we love ourselves.  The scriptures say – Love your neighbor as yourself. If you fulfill the greatest commandment according to this, you do well. [Letter of Saint James:-2-8]

(2) Help the needy and be kind to others.Praise the God of heaven. His love endures forever [Psalm 136-2]


3. Repentance of sins :-

I have come to call sinners to repentance, not the righteous. [St. Luke:-5-32]

I tell you, it is not so; But if you do not repent, you will all be destroyed in the same way. [St. Luke:-13-5]

(1)-Repent sincerely for the sins you have committed.

(2)- Ask for forgiveness from the Lord and resolve to follow the right path.


4. Study of Bible:-

(1)- Read the Bible and apply the teachings given in it in your life.  
 (2) - especially Try to understand and live the teachings of the Lord Jesus Christ(such as the Sermon on the Mount).


5. Be a true follower: - 

This will not happen in you. Whoever wants to become great among you, let him become your servant. And whoever wants to be chief among you, let him become your servant; Because the Son of Man has not come to be served, but to serve and to give his life for the salvation of many. [St. Matthew 20-26.28]

(1) - Be honest in your actions and thoughts.  

(2)- Always speak the truth and work for the welfare of others.


6. Maintain patience and faith:- 

Brothers! When you people have to face many types of adversities, consider yourself blessed. You know that this kind of testing of your faith produces patience. Let patience reach perfection, so that you yourself become perfect and incorruptible, and you lack nothing. [Letter of Saint James 1:- 2.4]


(1) - Maintain faith in Lord Jesus even in difficult times.  
   (2) - Understand that His blessings always come at the right time.


If you follow the path shown by Jesus Christ and show true love and devotion towards him, you will become eligible for his blessings.


Monday, December 16, 2024

प्रभु यीशु के जन्म के विषय में बाइबल के पुराने विधान (Old Testament) में कई भविष्यवाणियां की गई .

प्रभु यीशु के जन्म के विषय में बाइबल के पुराने विधान (Old Testament) में कई भविष्यवाणियां की गई .  


हेलो मसीह भाई और बहनों, आज कि इस लेख में हम जाएंगे की, प्रभु यीशु के जन्म के विषय में बाइबल के पुराने विधान (Old Testament) में कई भविष्यवाणियां की गई हैं, जो उनके आगमन और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं। यह भविष्यवाणियां उनके मसीहा होने का संकेत या संदेश देती हैं. आइए हम जाने की पुराने विधान (Old Testament) में प्रभु यीशु के जन्म की भविष्यवाणी के विषय में किन-किन वचनों में कहां गया है?


(1) प्रभु यीशु मसीहा का जन्मस्थान  की भविष्यवाणी:-
   मीकाह  का ग्रंथ 5:1  

   "हे बेतलेहेम एफ्राता !
जो यूदा के वंशों में छोटा है.
जो इजराइल का शासन करेगा, 
वह मेरे लिए तुझ में उत्पन्न होगा.
उसकी उत्पत्ति सुदूर अतीत में,
अत्यंत प्राचीन काल में हुई है.

   - यह भविष्यवाणी स्पष्ट करती है कि मसीहा बेतलेहेम में जन्म लेंगे, और यह प्रभु यीशु मसीह के जन्मस्थान से मेल खाती है।


(2.) कुंवारी कन्या से जन्म लेने की भविष्यवाणी  
   *इसायाह का ग्रंथ 7:14 इम्मनूल का चिन्ह :-

    प्रभु स्वयं तुम्हें एक चिन्ह देगा और वह यह है-
एक कुंवारे गर्भवती है वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानुएल रखेगी।"  
   - "इम्मानुएल" का अर्थ है "ईश्वर हमारे साथ।" 

इस वचन में, भविष्यवाणी प्रभु यीशु के अद्भुत और अलौकिक जन्म की ओर संकेत करती है।


( 3.) दाऊद के वंशज के रूप में मसीहा की भविष्यवाणी
   इसायाह 9:5.6  

   "यह इसलिए हुआ कि हमारे लिए
 एक बालक उत्पन्न हुआ है,
हमको एक पुत्र मिला है.
उसके कंधों पर राज्याधिकार रखा गया है
और  उसका नाम होगा- अपूर्व परामर्शदाता, शक्तिशाली ईश्वर, शाश्वत पिता,शांति का राजा.
वह दाऊद के सिंहासन पर विराजमान होकर सदा के लिए शांति, न्याय और धार्मिकता का साम्राज्य स्थापित करेगा
विश्वमंडल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कार्य संपन्न करेगा.

- यह वचन स्पष्ट करता है कि मसीहा दाऊद के वंश से आएंगे और उनकी प्रभुता अनन्तकाल तक बनी रहेगी।



(4.) मसीहा का स्वर्गीय उद्देश्य
   उत्पत्ति ग्रंथ 3:15 
 

   "मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूंगा.वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एडी काटेगा.

    यह पहली मसीहाई भविष्यवाणी मानी जाती है, जो पाप और शैतान पर यीशु की विजय की ओर इशारा करती है।



(5.) मसीहा के आगमन का समय की भविष्यवाणी
   दानिएल का ग्रंथ 9:25   

   "अतः जानकर यह समझ लो,
जेरूसलम के पुननिर्माण के विषय में आदेश प्रसारित होने से लेकर अभ्यंजीत नेता के आगमन तक 7 सप्ताह बीत जाएंगे;
फिर 62 सप्ताह तक चौको और खाई सहित उसका निर्माण
वह भी आपत्ति के दिनों में पूरा होगा।"  

   - यह भविष्यवाणी यीशु के आगमन और उनके मिशन की समय-सीमा को दिखाती है।




(6.) विदेशियों द्वारा आराधना,  
   स्रोत ग्रंथ (भजन संहिता )72:10-11  

   "  तसशीश और  द्वीपों के राजा
उन्हें उपहार देने आएंगे,शेबा और सबा के राजा
उन्हें भेंट चढ़ने आएंगे.
सभी राजा उन्हें दंडवत करेंगे.
सभी राष्ट्र उनके अधीन रहेंगे.

   - यह मसीहा के प्रति विदेशी राजाओं (जैसे, ज्योतिषियों) की आराधना की भविष्यवाणी है।


पुराना विधान (Old Testament)  प्रभु यीशु मसीहा के आने का मार्ग तैयार करता है, और नया विधान उनके जन्म, जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान के विवरण को पूर्ण करता है। इन भविष्यवाणियों का नया विधान (New Testamewnt) में पूरा होना यह प्रमाणित करता है कि प्रभु यीशु मसीह ही वह प्रतिज्ञात मसीहा हैं।

Thursday, December 12, 2024

सीरुस से सहायता का संदेश (इसायाह का ग्रंथ 41:-13.20)

सीरुस से सहायता का संदेश( इसायाह का ग्रंथ 41:-13.20)


 क्योंकि मैं तुम्हारा प्रभु ईश्वर हूं.
मैं तुम्हारा दाहिना हाथ पकड़ कर तुमसे कहता हूं-
मत डरो; देखो, मैं तुम्हारी सहायता करूंगा.


याकूब! तुम कीड़े जैसे हो गए हो.
इजरायल! तुम शव जैसे हो गए हो.
प्रभु कहता है- मैं तुम्हारी सहायता करूंगा,
इजराइल का परम पावन प्रभु तुम्हारा उद्धारक़ है.


मैं तुमको दंवरी का यंत्र बनाता हूं-
नया सुधार और पैना.
तुम पहाड़ों को दांव कर चूर-चूर करोगे
और पहाड़ियों को भूसी बना दोगे.


तुम उन्हें गुस्सा ओसाओगे-
हवा उन्हें उड़ा ले जाएगी
 और आंधी उन्हें छितरा  देगी.
तुम प्रभु में आनंद मनाओगे
और इजरायल के परम पावन ईश्वर पर गौरव 
करोगे.


दरिद्र पानी ढूंढते हैं और पते नहीं,
उनकी जीभ प्यास के मारे सूख गई है.
मैं, प्रभु उनकी दुहाई पर ध्यान दूंगा;
मैं, इजराइल का ईश्वर उन्हें नहीं त्यागूंगा.


मैं उजड़ पहाड़ियों पर से नादियां
 और घाटियों में जल धाराएं बह दूंगा.
मैं मरुभूमि को झील बनाऊंगा
और सूखी भूमि को जल स्रोतों से भर 
दूंगा.


मैं मरुभूमि में देवदार,
बबुल, मेहंदी और जैतून लगा दूंगा.
मैं उजड़ खंड में खजूर चीड़ और चनार के
 वृक्ष लगाऊंगा.


इस प्रकार सब देखकर जानेंगे,
सब उसे पर विचार कर स्वीकार करेंगे
के प्रभु ने यह सब किया है,
इसराइल के परम पावन ईश्वर ने इनकी
सृष्टि की है.


Message of help from Cyrus (Isaiah 41:13.20)


Because I am your God.
I hold your right hand and tell you-
do not fear; Look, I will help you.


Jacob! You have become like insects.
Israel! You have become like a dead body.
The Lord says- I will help you,
The Most Holy Lord of Israel is your Redeemer.


I will make you an instrument of dhanwari-
New improvement and sharpening.
you will raze mountains to pieces
And you will turn the hills into husk.


You will make them angry-
the wind will blow them away
 And the storm will scatter them.
you will rejoice in the lord
And glory to the Most Holy God of Israel 
Will do.


The poor look for water and do not find it,
His tongue has become dry due to thirst.
I, Lord, will pay attention to their cry;
I, the God of Israel, will not abandon them.


I rivers from desolate hills
 And I will make streams of water flow in the valleys.
I will turn the desert into a lake
And fill the dry land with water sources 
Give.

I am a cedar in the desert,
I will apply babul, henna and olive.
I am among the palm trees and poplar trees in the desolate area.
 I will plant trees.


In this way everyone will know after seeing,
everyone will consider and accept him
The Lord has done all this,
The Most Holy God of Israel
Is of creation.





Tuesday, December 10, 2024

आगमन क्या है और यह कब शुरू होता है ?

आगमन क्या है और यह कब शुरू होता है?


हेलो मसीह भाई बहनों. आखिर क्रिसमस से पहले आगमन काल क्यों मनाया जाता है,और इस आगमन काल में किस-किस चीज की तैयारी की जाती है,आइऐ हम जाने इस लेख में:-

आगमन काल (Advent)

आगमन काल(Advent) :- जो प्रभु यीशु मसीह के जन्म यानी क्रिसमस  के आने की तैयारी और प्रतीक्षा का प्रतीक है। यह काल क्रिसमस से पहले के चार रविवारों से शुरू होकर 24 दिसंबर (क्रिसमस के पहले दिन शाम को) तक चलता है। 

आगमन काल का उद्देश्य:- आत्मा को शुद्ध करना, विश्वास को गहरा करना, और प्रभु यीशु मसीह के आगमन के लिए मानसिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार होना है।


आगमन काल मनाने के  प्रमुख कारण इस प्रकार से हैं:-

1. प्रभु के जन्म की प्रतीक्षा:-

  यह काल हम मसीह भाइयों और बहनों को यीशु मसीह के पहले आगमन की याद दिलाता है, जब वे इस दुनिया में जन्म लेने आए थे। 


2. आध्यात्मिक तैयारी:- 

यह समय हम मसीह भाइयों और बहनों के लिए आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, उपवास और अच्छे कार्यों के लिए समर्पित होता है, जिससे हम अपने जीवन में  प्रभु यीशु मसीह की उपस्थिति को  महसूस कर सके।


3. दूसरे आगमन की आशा:- 

आगमन काल न केवल प्रभु यीशु मसीह के पहले आगमन की प्रतीक्षा करता है, बल्कि उनके दूसरे आगमन (पुनरागमन) की आशा और तैयारी का प्रतीक भी है।


4. आनंद, खुशी और आशा का समय:- यह समय हम मसीह भाइयों और बहनों के लिए परिवार और समुदाय के साथ प्रेम, शांति, और आशा बांटने का अवसर प्रदान करता है। 

आगमन काल के प्रतीक(symbols of advent)

1. आगमन का माला (Advent Wreath):- इसमें चार मोमबत्तियां होती हैं, जो हर रविवार को जलाई जाती हैं। यह मोमबत्तियां आशा, शांति, आनंद और प्रेम का प्रतीक हैं।
   

2. बैंगनी रंग:- इस आगमन काल में बैंगनी रंग का प्रयोग होता है, जो पश्चाताप और तैयारी का प्रतीक है।


आगमन काल कैसे मनाया जाता है?

(1) प्रार्थना और भजन.
(2) बाइबिल का गहरा 
अध्ययन.  

(3) चर्च में विशेष समारोह.

(4) गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना.


आगमन काल क्रिसमस ( यानी प्रभु यीशु मसीह के जन्म ) की पवित्रता और गहराई को समझने का एक महत्वपूर्ण समय है, जो आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन को समृद्ध करता है।



Why is Advent celebrated?


Hello Christian brothers and sisters. Why is Advent celebrated before Christmas, and what preparations are made during this Advent, let us know in this article:-


Advent:-

Advent: - which is a symbol of preparation and waiting for the birth of Lord Jesus Christ i.e. Christmas. This period starts from the four Sundays before Christmas and continues till 24 December (in the evening of the first day of Christmas).


Purpose of the arrival period: -To purify the soul, deepen the faith, and prepare mentally and spiritually for the coming of the Lord Jesus Christ.


The main reasons for celebrating Advent are as follows:-

1. Waiting for the birth of the Lord: - This period reminds us, our Christian brothers and sisters, of the first coming of Jesus Christ, when he was born into this world.

2. Spiritual preparation:-  This time is dedicated for us Christian brothers and sisters for introspection, prayer, fasting and good deeds, so that we can feel the presence of Lord Jesus Christ in our lives.

3. Hope of the second coming:-  The season of Advent not only awaits the first coming of the Lord Jesus Christ, but also symbolizes the hope and preparation for His second coming (Return).

4. A time of joy, happiness and hope:-This time provides an opportunity for us, our brothers and sisters in Christ, to share love, peace, and hope with our families and communities.


symbols of advent:-

(1)Advent Wreath:- It contains four candles, which are lit every Sunday. These candles symbolize hope, peace, joy and love.


2. Purple color: - The color purple is used during this Advent season, which symbolizes repentance and preparation.


How is Advent celebrated ?

(1) Prayers and hymns.

(2) Deep study of the Bible.
(3) Special ceremonies in church.
(4) Helping the poor and needy.



Advent is an important time to understand the holiness and depth of Christmas (the birth of the Lord Jesus Christ), which enriches spiritual and social life.





Monday, December 9, 2024

"मैं जीवन की रोटी हूं" इस वचन का अर्थ:

प्रभु यीशु ने कहा "मैं जीवन की रोटी हूं" इस वचन का अर्थ :-

 

यीशु मसीह ने उनसे कहा, " जीवन की रोटी में हूं" . जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यास ना होगा. परंतु मैं तुमसे कहा, कि तुमने मुझे देख भी लिया है, तो भी विश्वास नहीं करते. जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा. और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी नहीं निकलेगा. 

यीशु मसीह ने यह बात पाँच रोटियों और दो मछलियों से 5,000 लोगों को भोजन कराने के बाद कही थी.

प्रभु यीशु ने कहा "मैं जीवन की रोटी हूं" (I am the Bread of Life) बाइबल में संत योहन 6:35 में मिलता है। यह कथन गहरी आध्यात्मिक सच्चाई और प्रतीकात्मकता (symbolism)को दर्शाता है।

यीशु ने कहा:
"मैं जीवन की रोटी हूं। जो मेरे पास आता है, वह कभी भूखा न रहेगा; और जो मुझ पर विश्वास करता है, वह कभी प्यासा न होगा।"योहन 6:35 

इस वचन का अर्थ:-

  1. आध्यात्मिक भूख का समाधान:-

    प्रभु यीशु ने "जीवन की रोटी" के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया, जिससे उनका तात्पर्य यह था कि जैसे शारीरिक शरीर को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही आत्मा को जीवित रहने और पूर्णत:  पाने के लिए यीशु मसीह पर विश्वास और परमेश्वर के साथ संबंध की आवश्यकता होती                                               

  2. शाश्वत जीवन का आश्वासन:-रोटी दैनिक जीवन के लिए एक आवश्यक भोजन है। यीशु मसीह ने इसे एक प्रतीक के रूप में उपयोग करके यह स्पष्ट किया कि जो लोग उन पर विश्वास करते हैं, और उनका अनुसरण करते हैं, वे आत्मिक रूप से तृप्त होंगे और उन्हें शाश्वत जीवन प्राप्त होगा।

  3. पारंपरिक मन्ना से तुलना:-
    इस वचन से पहले, प्रभु यीशु ने अपने सुननेवालों को इस्राएलियों के मन्ना (स्वर्ग से आया भोजन) की याद दिलाई, जो उन्हें जंगल में मिला था। उन्होंने कहा कि वह मन्ना जो इस्राएलियों ने खाया था, केवल शारीरिक भूख को शांत करता था, लेकिन वह "जीवन की रोटी" हैं, जो आत्मिक जीवन और शाश्वत तृप्ति प्रदान करती है।

  4. प्रभु भोज (Holy Communion):-
    इस कथन का संबंध ईसाई धर्म के "प्रभु भोज" (Holy Communion) से भी जोड़ा जाता है। इस समारोह में रोटी और दाखरस यीशु के शरीर और रक्त का प्रतीक माने जाते हैं। यह यीशु के बलिदान और उनके साथ आत्मिक एकता का प्रतीक है।

व्यावहारिक संदेश:

यीशु का यह वचन हमें सिखाता है कि केवल भौतिक साधनों से जीवन की तृप्ति नहीं हो सकती। सच्ची शांति और पूर्णत: परमेश्वर में विश्वास और आध्यात्मिक जीवन के माध्यम से ही प्राप्त होती है।

Lord Jesus said "I am the bread of life" meaning of this word:-

Jesus Christ said to them, "I am the bread of life". Whoever comes to me will never be hungry and whoever believes in me will never be thirsty. But I told you that even if you have seen me, you still do not believe me. Whatever the Father gives me will come to me. And whoever comes to me I will never turn away.

Jesus Christ said this after feeding 5,000 people with five loaves of bread and two fish.

Lord Jesus said "I am the Bread of Life" is found in the Bible in Saint John 6:35. This statement reflects deep spiritual truth and symbolism.

Jesus said:
"I am the bread of life. He who comes to me will never hunger; and he who believes in me will never thirst."John 6:35


Meaning of this verse:-

(1)Solution to spiritual hunger:- The Lord Jesus presented Himself as the “Bread of Life,” by which He meant that just as the physical body needs food to survive, so the soul needs food to survive and be fulfilled. Requires faith in Christ and relationship with God.

(2)Assurance of Eternal Life:- Bread is an essential food for daily life. Jesus Christ used it as a symbol to make it clear that those who believe in him, and follow him, will be spiritually satisfied and have eternal life.

(3)Comparison with traditional manna:-Before this verse, the Lord Jesus reminded His listeners of the Israelites' manna (food from heaven), which they found in the wilderness. He said that the manna that the Israelites ate only satisfied physical hunger, but that it was the "bread of life" that provided spiritual life and eternal satisfaction.

(4)Holy Communion:-This statement is also related to the "Holy Communion" of Christianity. In this ceremony the bread and wine are considered symbols of the body and blood of Jesus. It symbolizes the sacrifice of Jesus and spiritual union with him.

 message:
This word of Jesus teaches us that life cannot be fulfilled only by material means. True peace is achieved only through faith in God and spiritual life.


Saturday, December 7, 2024

प्रभु यीशु का जन्मदिन आने पर हमें क्या तैयारी करनी चाहिए ?


प्रभु यीशु का जन्मदिन आने पर हमें क्या तैयारी करनी चाहिए ?

हेलो मसीह भाई बहनों. आज के लेख में हम जानेंगे कि25 दिसंबर को प्रभु यीशु का जन्मदिन आ रहा है जिसे हम क्रिसमस के रूप में मनाते हैं,यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यामिक अवसर है.इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, इस दिन को मनाने के लिए हमें अपनी तैयारी ध्यानपूर्वक और श्रद्धा के साथ करनी चाहिए. ताकि यह केवल एक उत्सव ना बने बल्कि हमारे जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और सामूहिक प्रेम का स्रोत बने. उनके आगमन पर हमारे हृदय में, हमारे परिवारों में, हमारे पड़ोसियों में और हमारे समाज में, प्रभु यीशु के लिए हमें किस प्रकार की तैयारी करनी चाहिए?

1. आध्यात्मिक या आंतरिक तैयारी :-

  • रोज हमें बाइबल पढ़ने चाहिए:- 
     प्रभु यीशु के जन्म और उनके जीवन के बारे में बाइबिल में लिखा गया है। इस दिन को मनाने के लिए बाइबिल की कुछ प्रमुख वचनों को पढ़ना और समझना, जिस प्रकार से प्रभु यीशु के शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में ग्रहण किया. ठीक उसी प्रकार से हमें भी हमें भी प्रभु यीशु की शिक्षाओं को अपने जीवन में ग्रहण करना चाहिए.

  • प्रभु यीशु से प्रार्थना करना :-
    इस दिन से पहले और इस दिन, हमें प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए और उनके संदेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि यीशु का जन्म,  हम मानव जाति के लिए उद्धार का संदेश लेकर आया था। प्रार्थना के द्वारा हम अपने जीवन में उनके प्रेम, दया और मार्गदर्शन को  ग्रहण कर सकते हैं। 

  •  जरूरतमंदों ,लाचार और गरीबों  की मदद करें:-
     प्रभु यीशु ने हमें प्रेम, दया और सेवा की शिक्षा दी है। इस दिन को मनाने का एक सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम जरूरतमंदों, लाचारऔर गरीबों की मदद करें। दान देना, गरीबों को खाना बांटना, या समाज सेवा करना, यह सब प्रभु के संदेश को फैलाने के रूप में देखा जा सकता है.

  • प्रेम ,दया और सहानुभूति दिखाना:- इस दिन, हमें अपने आस-पास के लोगों के प्रति प्रेम, दया और सहानुभूति और सहकार्य का भाव रखना चाहिए। किसी को खुश करना या उन्हें अपनी मदद से खुशी देना भी एक प्रकार से प्रभु यीशु के जन्म को मनाने का तरीका हो सकता है।

2. घर की सजावट:-

  • क्रिसमस ट्री और सजावट: -
     इस दिन का जश्न मनाने के लिए घर को सजाना एक प्रचलित परंपरा है। क्रिसमस ट्री, मोमबत्तियाँ, स्टार और अन्य सजावटों से घर को सजाना प्रभु यीशु के प्रेम और रोशनी को दर्शाता है। 
  • प्रभु यीशु के जन्म स्थल की याद:- 
     घर में एक छोटा सा मंजार या नटिविटी सीन(Crib) बनाना, जो प्रभु के जन्म को दर्शाता है, यह भी एक सुंदर तरीका है इस दिन को श्रद्धा के साथ मनाने का।

3. उपहारों का आदान-प्रदान:-

  • प्रेम और दयालुता के प्रतीक:- प्रभु यीशु के जन्म के समय, तीन ज्ञानी पुरुष उन्हें उपहार लेकर आए थे.(संत मत्ती 2:-1-2) इसी तरह, हम भी अपने प्रियजनों को उपहार दे सकते हैं, लेकिन उपहारों का आदान-प्रदान प्रेम और दयालुता के प्रतीक के रूप में किया जाना चाहिए।
  • साझा खुशी:-  इस दिन का असली उपहार प्रेम, स्नेह और आनंद को साझा करना है।

4. विशेष भोजन और परंपराएँ:-

  • क्रिसमस भोज: क्रिसमस का समय विशेष भोजन , मिठाईयों और क्रिसमस केक का होता है। इस दिन को परिवार और मित्रों के साथ मिलकर विशेष भोजन तैयार करना और साथ में आनंदित समय बिताना.
  • प्रेम और एकता का प्रतीक: भोजन और उत्सवों के दौरान हमें यह याद रखना चाहिए कि यह एकता, परिवार, और प्रेम का पर्व है। इसलिए, हमें हर किसी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।

5. आध्यात्मिक पुनःसमीक्षा:-

  • पापों की माफी और जीवन में सुधार:-
     क्रिसमस का समय हमें अपनी गलतियों और पापों पर पुनः विचार करने और उनसे उभरने का अवसर देता है। इस दिन हम प्रभु से क्षमा मांग सकते हैं और अपने जीवन को सुधारने का संकल्प ले सकते हैं।
  • आध्यात्मिक जीवन को पुनर्जीवित करना: प्रभु यीशु का जन्म हमारे जीवन को आध्यात्मिक रूप से पुनः जीवित करने का समय है। हमें इस अवसर पर अपनी आत्मा की शुद्धि की ओर ध्यान देना चाहिए और अपने जीवन में प्रभु की उपस्थिति को महसूस करना चाहिए।

6. संगीत और नृत्य:-

  • क्रिसमस कैरोल गाना:- क्रिसमस के दौरान कैरोल गाने का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है। यह प्रभु के जन्म की खुशी और सम्मान में गाए जाते हैं। हमें इस दिन को संगीत और भक्ति के साथ मनाना चाहिए, जो हमें प्रभु के साथ जुड़ने और उनके संदेश को फैलाने में मदद करे।

7. सकारात्मक और उत्साही मानसिकता

  • आध्यात्मिक दृष्टिकोण:- हमें इस दिन को केवल एक त्योहार के रूप में न देखें, बल्कि यह दिन हमारे जीवन में प्रभु यीशु के प्रेम और आशीर्वाद का स्वागत करने का अवसर होना चाहिए। हमें अपनी मानसिकता को सकारात्मक बनाए रखना चाहिए, ताकि हम इस दिन को पूरी श्रद्धा और प्रेम से मना सकें।

इन तैयारियों के माध्यम से हम क्रिसमस को केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव और प्रभु यीशु के प्रेम को जीवन में उतारने का समय बना सकते हैं।


What preparations should we make when the birthday of Lord Jesus comes?

Hello Christ brothers and sisters. In today's article we will know that the birthday of Lord Jesus is coming on 25th December which we celebrate as Christmas, it is an important religious and spiritual occasion. Keeping all these things in mind, there are ways to celebrate this day. For this, we should do our preparation carefully and with devotion. So that it becomes not just a festival but a source of spiritual progress and collective love in our lives. What kind of preparations should we make for the Lord Jesus at His coming in our hearts, in our families, in our neighbors, and in our society?


1. Spiritual or internal preparation :-

We should read the Bible daily:-The birth and life of Lord Jesus is written in the Bible. To celebrate this day, read and understand some key verses of the Bible, the way the disciples of Lord Jesus accepted His teachings in their lives. In the same way, we too should accept the teachings of Lord Jesus Christ in our lives.


* Praying to Lord Jesus Christ:-Before and on this day, we should pray to the Lord and focus on His message. We must remember that the birth of Jesus brought the message of salvation to us mankind.Through prayer we can receive His love, mercy and guidance in our lives.

*Help the needy, helpless and poor:-  Lord Jesus has taught us love, kindness and service. One of the best ways to celebrate this day is to help the needy, helpless and poor. Giving charity, distributing food to the poor, or doing social service can all be seen as spreading the message of God.

*Showing love, kindness and sympathy:- On this day, we should show love, kindness and sympathy and cooperation towards the people around us. Making someone happy or giving them happiness with your help can also be a way of celebrating the birth of Lord Jesus.

2. Home Decoration:-

*Christmas Tree and Decoration:- Decorating the house to celebrate this day is a popular tradition. Decorating the house with Christmas tree, candles, stars and other decorations reflects the love and light of Lord Jesus.

*Remembrance of the birth place of Lord Jesus:- Making a small table or nativity scene in the house, which depicts the birth of the Lord, is also a beautiful way to celebrate this day with devotion.

3. Exchange of gifts:-

Symbol of love and kindness:- At the time of the birth of Lord Jesus, three wise men brought him gifts. (Saint Matthew 2:-1-2) Similarly, we can also give gifts to our loved ones, but gifts should not be exchanged. -The gift should be given as a symbol of love and kindness.

* Shared Happiness:- The real gift of this day is sharing love, affection and joy.

4. Special Food and Traditions:-

* Christmas Feast: Christmas is a time of special food, sweets and Christmas cakes. On this day, prepare special food with family and friends and spend happy time together.
* Symbol of love and unity:- During meals and celebrations we should remember that it is a festival of unity, family, and love. Therefore, we should behave lovingly with everyone.

5. Spiritual Review:-

* Forgiveness of sins and improvement in life:- Christmas time gives us an opportunity to reconsider our mistakes and sins and recover from them. On this day we can ask for forgiveness from the Lord and resolve to improve our lives.

*Revitalizing Spiritual Life:- The birth of Lord Jesus is a time to revitalize our lives spiritually. We should take this opportunity to pay attention to the purification of our soul and feel the presence of the Lord in our lives.

6. Music and Dance:-

* Singing Christmas Carols:- Singing carols during Christmas is an important religious and cultural tradition. These are sung in the joy and honor of the birth of the Lord. We should celebrate this day with music and devotion, which helps us connect with the Lord and spread his message.

7. Positive and enthusiastic mindset

* Spiritual Perspective:- Let us not see this day as just a festival, rather this day should be an opportunity to welcome the love and blessings of Lord Jesus into our lives. We should keep our mindset positive, so that we can celebrate this day with full devotion and love.


Through these preparations we can make Christmas not just a celebration, but a spiritual experience and a time to live out the love of Lord Jesus.



Friday, December 6, 2024

पवित्र बाइबल में किन-किन वचनों में प्रभु यीशु को यहूदियों का राजा कहा गया?

पवित्र बाइबल में किन-किन  वचनों में प्रभु यीशु को यहूदियों का राजा कहा गया?
हेलो मासीह भाई और बहनों आज के इस लेख में हम जानेंगे कि पवित्र बाइबल में किन-किन वचनों में प्रभु यीशु को यहूदियों का राजा कहां गया? 


बाइबल में कई स्थानों पर प्रभु यीशु को "राजा " कहां गया है कुछ प्रमुख वचन इस प्रकार से हैं
(1) संत मत्ती 2:-1-2 प्रभु यीशु  का जन्म यहूदिया के बेथलहम में राजा हेरोद के समय हुआ था.  इसके बाद ज्योतिषी पूर्व से येरूसालेम आए और यह बोल , यहूदियों के नवजात राजा कहां है ? हमने उनका तारा उदित होते देखा . हम उन्हें दंडवत करने आए हैं.


(2) संत मत्ती 27:- 11-प्रभु यीशु अब राज्यपाल के सामने खड़े थे. राज्यपाल ने उनसे पूछा, क्या तुम यहूदियों के राजा हो?प्रभु यीशु ने उत्तर दिया, "आप ठीक ही कहते हैं".


(3)  संत योहन (यूहन्ना) 18:- 36-37- प्रभु यीशु ने उत्तर दिया, मेरा राज्य इस संसार का नहीं है. यदि मेरा राज्य इस संसार का होता, तो मेरे अनुयायी लड़ते और मैं यह यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता. परंतु मेरा राज्य यहां का नहीं है. इस पर पिलातुस ने उनसे कहा, तो, तुम राजा हो? ईसा ने उत्तर दिया ," आप ठीक हैं कहते हैं.  मैं राजा हूं.


(4) संत लुकस 23:-3- पिलातुस ने ईसा से यह प्रश्न किया, क्या तुम यहूदियों के राजा हो?   प्रभु यीशु ने उत्तर दिया. " आप ठीक ही कहते हैं"


(5)  प्रकाशना ग्रंथ 19:-16- उसके वस्त्र और उसकी जांघ पर यह नाम अंकित है- राजाओं का राजा और प्रभु का प्रभु. 


(6) प्रकाशना ग्रंथ 17:- 14-  वे मेमने से युद्ध करेंगे और मेमना उन्हें पराजित कर देगा, क्योंकि वह प्रभु का प्रभु एवं राजाओं का राजा है.


पवित्र बाइबल के वचनों में प्रभु यीशु को " राजा " के रूप में पहचान गया है, और यह वचन बताते हैं कि प्रभु यीशु मसीह  का राजत्व  न केवल पृथ्वी पर , बल्कि आकाश और पृथ्वी दोनों पर है.


परमेश्वर की आशीष और कृपा हम सबके परिवार पर बनी रहे. आमेन



In which verses of the Holy Bible is Lord Jesus called the King of the Jews?


Hello Masih brothers and sisters, in today's article we will know in which verses of the Holy Bible is Lord Jesus called the King of the Jews?


In the Bible, Lord Jesus has been called "King" at many places. Some important verses are as follows:


(1) Saint Matthew 2:-1-2 Lord Jesus was born in Bethlehem of Judea during the time of King Herod. After this, astrologers came to Jerusalem from the east and said, where is the newborn King of the Jews? We saw his star rising. We have come to worship him.


(2) Saint Matthew 27:- 11- Lord Jesus was now standing before the governor. The governor asked him, are you the King of the Jews? Jesus replied, "You are right".


 (3) St. John 18:- 36-37- The Lord Jesus answered, My kingdom is not of this world. If my kingdom were of this world, my followers would fight, and I would not have been handed over to the Jews. But my kingdom is not from here. Pilate said to him, "So, you are a king?" Jesus answered, "You are right. I am a king.


4) St. Luke 23:-3- Pilate asked Jesus, “Are you the King of the Jews?” Jesus answered, “You are right.”


(5) Revelation 19:-16- On his robe and on his thigh is written the name, King of kings and Lord of lords.


(6) Revelation 17:-14- They will make war against the Lamb, and the Lamb will defeat them, because he is Lord of lords and King of kings.


In the words of the Holy Bible, the Lord Jesus is identified as “King”, and these words show that the kingship of the Lord Jesus Christ is not only on earth, but in heaven and on earth.


May God’s blessings and grace be upon all of our families. Amen

I Am the Bread of Life "जीवन की रोटी मैं"

"जीवन की रोटी मैं" [  I Am the Bread of Life"]  बाइबल में "जीवन की रोटी" का उल्लेख विशेष रूप से यीशु मसीह के द्वारा...