प्रभु यीशु ने कहा "मैं जीवन की रोटी हूं" इस वचन का अर्थ :-
यीशु मसीह ने उनसे कहा, " जीवन की रोटी में हूं" . जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यास ना होगा. परंतु मैं तुमसे कहा, कि तुमने मुझे देख भी लिया है, तो भी विश्वास नहीं करते. जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा. और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी नहीं निकलेगा.
यीशु मसीह ने यह बात पाँच रोटियों और दो मछलियों से 5,000 लोगों को भोजन कराने के बाद कही थी.
प्रभु यीशु ने कहा "मैं जीवन की रोटी हूं" (I am the Bread of Life) बाइबल में संत योहन 6:35 में मिलता है। यह कथन गहरी आध्यात्मिक सच्चाई और प्रतीकात्मकता (symbolism)को दर्शाता है।
यीशु ने कहा:
"मैं जीवन की रोटी हूं। जो मेरे पास आता है, वह कभी भूखा न रहेगा; और जो मुझ पर विश्वास करता है, वह कभी प्यासा न होगा।"योहन 6:35
इस वचन का अर्थ:-
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आध्यात्मिक भूख का समाधान:-
प्रभु यीशु ने "जीवन की रोटी" के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया, जिससे उनका तात्पर्य यह था कि जैसे शारीरिक शरीर को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही आत्मा को जीवित रहने और पूर्णत: पाने के लिए यीशु मसीह पर विश्वास और परमेश्वर के साथ संबंध की आवश्यकता होती
शाश्वत जीवन का आश्वासन:-रोटी दैनिक जीवन के लिए एक आवश्यक भोजन है। यीशु मसीह ने इसे एक प्रतीक के रूप में उपयोग करके यह स्पष्ट किया कि जो लोग उन पर विश्वास करते हैं, और उनका अनुसरण करते हैं, वे आत्मिक रूप से तृप्त होंगे और उन्हें शाश्वत जीवन प्राप्त होगा।
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पारंपरिक मन्ना से तुलना:-
इस वचन से पहले, प्रभु यीशु ने अपने सुननेवालों को इस्राएलियों के मन्ना (स्वर्ग से आया भोजन) की याद दिलाई, जो उन्हें जंगल में मिला था। उन्होंने कहा कि वह मन्ना जो इस्राएलियों ने खाया था, केवल शारीरिक भूख को शांत करता था, लेकिन वह "जीवन की रोटी" हैं, जो आत्मिक जीवन और शाश्वत तृप्ति प्रदान करती है। -
प्रभु भोज (Holy Communion):-
इस कथन का संबंध ईसाई धर्म के "प्रभु भोज" (Holy Communion) से भी जोड़ा जाता है। इस समारोह में रोटी और दाखरस यीशु के शरीर और रक्त का प्रतीक माने जाते हैं। यह यीशु के बलिदान और उनके साथ आत्मिक एकता का प्रतीक है।
व्यावहारिक संदेश:
यीशु का यह वचन हमें सिखाता है कि केवल भौतिक साधनों से जीवन की तृप्ति नहीं हो सकती। सच्ची शांति और पूर्णत: परमेश्वर में विश्वास और आध्यात्मिक जीवन के माध्यम से ही प्राप्त होती है।
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